बख़्शीश meaning in Hindi
pronunciation: [ bekheshish ]
Examples
- तब वह बोला कि , “ मैडम जी अब मैं जा सकता हूं ? '' मैंने उसकी काम के प्रति इस शिद्दत को देखकर उसे कुछ बख़्शीश देनी चाही लेकिन वह नहीं माना और यह कहकर चलता बना कि , ” यह तो इंसानियत के नाते मेरा फ़र्ज़ था . '' मुझे आज भी वह रिक्शा वाला और उसकी इंसानियत याद आती है .
- वे तुम पर खुश होते हैं - तुम्हें बख़्शीश देते हैं तुम्हारे सीने पर कपड़े के रंगीन फूल बाँधते हैं तुम्हें तीन जोड़ा वर्दी , चमकदार जूते और उन्हें चमकाने की पॉलिश देते हैं खेलने के लिए बन्दूक और नंगीं तस्वीरें खाने के लिए भरपेट खाना , सस्ती शराब वे तुम्हें गौरव देते हैं और इसके बदले तुमसे तुम्हारे निर्दोष हाथ और घास काटती हई लडकियों से बचपन में सीखे गए गीत ले लेते हैं
- आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगावक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगाइतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनीतू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगातुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगेऔर वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगाज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवालातेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगाडूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँमैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगाज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का ” ये तबियत है तो . ..
- आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा डूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँ मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का “फ़राज़” ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा
- आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा डूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँ मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का “ फ़राज़ ” ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा
- आँख से दूर न हो / फ़राज़ आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जायेगा ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा डूबते डूबते कश्ती तो ओछाला दे दूँ मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का “फ़राज़” ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा