प्रपञ्च meaning in Hindi
pronunciation: [ perpenyech ]
Examples
- संभवतः शुरूआती दिनों में ब्लॉग शीर्षक में हिन्दी प्रदर्शन सक्षमता नहीं होने के कारण 100% शुद्ध हिन्दी वादी आलोक को , जो बैंगलुरु को बैङगलुरू और प्रपंच को प्रपञ्च लिखना ...
- संभवतः शुरूआती दिनों में ब्लॉग शीर्षक में हिन्दी प्रदर्शन सक्षमता नहीं होने के कारण 100% शुद्ध हिन्दी वादी आलोक को , जो बैंगलुरु को बैङगलुरू और प्रपंच को प्रपञ्च लिखना ज्यादा पसंद करते हैं, 9-2-11 शीर्षक ही जंचा होगा.
- अतः आपने इस सकल प्रपञ्च को छोड़कर एकान्तवास तथा मौन-वृत्ति धारण कर ली , प्रवचन देना तथा इस उद्देश्य से स्थान-स्थान भ्रमण करना छोड़ दिया और रोहतक जाकर नगर से बाहर श्री नन्दलालजी ध बगीची में अकेले रहने लगे।
- जिस मनुष्य को समस्त लौकिक प्रपञ्च की क्षणभंगुरता पुष्ट हो गई है उसे किसी वस्तु से लोभ और मोह नहीं हो सकता ; क्योंकि वह जानता है कि जिसका लोभ और मोह आज करेंगे कल उसका स्वयं ही नाश हो जाना है ;
- जिस मनुष्य को समस्त लौकिक प्रपञ्च की क्षणभंगुरता पुष्ट हो गई है उसे किसी वस्तु से लोभ और मोह नहीं हो सकता ; क्योंकि वह जानता है कि जिसका लोभ और मोह आज करेंगे कल उसका स्वयं ही नाश हो जाना है ;
- तब तक यह जीवन है जब तक साँसे हैं इसके टूट जाने के बहाने तो बस जरा से हैं हमारी साँसो की डोर बँधी है उस अद्वैत परमात्मा से जो सत्-चित्त-आनन्द है और इस दुनिया की सारी माया , सारा प्रपञ्च उसकी ही मुठ्ठी में बन्द है
- आप केवल अपनी क्रीडा के लिए ही इस सम्पूर्ण प्रपञ्च की रचना करते हो , इस प्रपञ्च में जितने भी प्राणिवर्ग हैं, वह सब आपके क्रीडार्थ मृग के समान हैं, हे भगवान् इस संसार में आकर मैंने यहाँ जो कुछ भी कर्म किया है, वह सब आपके प्रसन्नतता के लिए ही होवे।
- आप केवल अपनी क्रीडा के लिए ही इस सम्पूर्ण प्रपञ्च की रचना करते हो , इस प्रपञ्च में जितने भी प्राणिवर्ग हैं, वह सब आपके क्रीडार्थ मृग के समान हैं, हे भगवान् इस संसार में आकर मैंने यहाँ जो कुछ भी कर्म किया है, वह सब आपके प्रसन्नतता के लिए ही होवे।
- जिस प्रकार प्रज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार-बार निकलती हैं और पुनः अपने कारण में लीन हो जाती हैं , उसी प्रकार बुद्धि , मन , इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर-यह गुणमय प्रपञ्च जिन स्वयंप्रकाश परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्हीं में लीन हो जाता है।।
- जिस प्रकार इन्धन के अभाव में अग्नि शान्त हो जाती है , उसी प्रकार कर्म जनित वासना और उसके कारण उद्भूत जगत प्रपञ्च की भ्रान्ति का वन इन्धन उस ज्ञानाग्नि से जला दिए जाने पर वह, विद्याग्नि भी शान्त हो जाती है, और शेष रह जाती है आपमें एकाकार की अवस्था, अर्थात सच्चिदानन्दमय रूप