पाषाण हृदय meaning in Hindi
pronunciation: [ paasaan heridey ]
Examples
- हम लोगों का तो कर्म ही क्रूरता का है , किंतु अपमृत्युवश किसी युवा अथवा कम उम्र के प्राणी के असामयिक प्राण हरण करते समय उनके पारिवारिक सदस्यों का करुण क्रंदन सुनकर हम पाषाण हृदय का मन भी दुखी एवं द्रवित होने लगता है।
- हम लोगों का तो कर्म ही क्रूरता का है , किंतु अपमृत्युवश किसी युवा अथवा कम उम्र के प्राणी के असामयिक प्राण हरण करते समय उनके पारिवारिक सदस्यों का करुण क्रंदन सुनकर हम पाषाण हृदय का मन भी दुखी एवं द्रवित होने लगता है।
- कंचन जी ये कहानी नहीं है , संस्मरण भी नहीं , पर कुछ तो है जो लेखनी को चलने पे मजबूर कर गया | वो जो भी हो , है बहुत ही भयावह , मर्मान् तक और किसी भी पाषाण हृदय को विचलित करने में सक्षम |
- क्रांति का भय न था , विद्रोह का भय न था , भीषण-से-भीषण विद्रोह भी उनको आशंकित न कर सकता था , भय था हत्याकांड का , न जाने कितने गरीब मर जाएँ , न जाने कितना हाहाकार मच जाए ! पाषाण हृदय भी एक बार रक्तप्रवाह से काँप उठता है।
- क्रांति का भय न था , विद्रोह का भय न था , भीषण-से-भीषण विद्रोह भी उनको आशंकित न कर सकता था , भय था हत्याकांड का , न जाने कितने गरीब मर जाएँ , न जाने कितना हाहाकार मच जाए ! पाषाण हृदय भी एक बार रक्तप्रवाह से काँप उठता है।
- ब्रह्मा , देव , ऋषि-मुनियों की मण्डली को लेकर क्षीर सागर के तट पर विविध स्त्रोतों से भगवान विष्णु की स्तुति करने पर आकाशवाणी हुई तथा ब्रह्माजी ने देवताओं को भगवान का निम्न संदेश सुनाया कि आनेवाला युग कलियुग है और शवहीन पाषाण हृदय लोग मेरे प्रत्यक्ष दर्शनों के अधिकारी नहीं है।
- किन्तु शत्रु समीर के समक्ष मुखरहीन हो जाती वो अपने वेग से इक-इक प्रष्ठों को खोल मुझे कष्ट पहुंचा रहा है , और तुम्हारी जुदाई का दुख नमक रूप मे नैनो से बहता जा रहा है और पीड़ित मन की आतुरता स्वयं कह उठी , दर्द की अभिव्यक्ति जब भी मेरी आँखों से बहेगी , तेरे पाषाण हृदय मे भी ठोकर लगेगी।
- इस कारण जहां यहां के लाखों पेड पोधों व वनस्पतियों के साथ करोड़ो जीवों की निर्मम हत्या करने के साथ लाखों लोगों को विस्थापित करने को कोन सा पाषाण हृदय का इंसान अपने निहित स्वार्थ में अंधा हो कर जबरन यहा जनता को ऊर्जा की पट्टी बांध कर वर्तमान का ही नहीं भविष्य को भी तबाह करने का कृत्य कर रहे है।
- मन की माटी में कभी उगाता धान कभी गेहूं , बाजरा , मकई तरह तरह के अनाज साग सब्जियां , फल पाषाण हृदय , वक्रबुद्धि के आघात से सूख जाती फसल किन्तु धूप , हवा और बादल देते मुझे जीवन-दान दिन प्रति दिन किसी न किसी विन्दु पर चाहता हूं प्रकृति का अवदान क्योंकि वहीं तो प्रत्येक स्थिति में करती है संकट से परित्राण ऊब और खीझ भरा दिन चर्याओं के बीच आस्था परिवर्तन में हंसी और क्रन्दन में प्राप्य और अप्राप्य की बांटा बाटी में हृदय के प्रस्फुरण में अंकुरित होता नवचिन्हत मन की माटी में ...