निष्कृति meaning in Hindi
pronunciation: [ nisekriti ]
Examples
- आपकी इस रचना पर जो मुझे कहना है वह रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों द्वारा कहूंगा भक्ति है यह ईश-गुण-गायन नहीं है यह व्यथा है यह नहीं दुख की कथा है यह हमारा कर्म है , कृति है यही निष्कृति नहीं है यह हमारा गर्व है यह साधना है-साध्य विनती है।
- शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय , बैकुंठेर बिल , मेज दीदी , दर्पचूर्ण , अभागिनी का स्वर्ग , श्रीकांत , अरक्षणीया , निष्कृति , मामलार फल , अनुपमा का प्रेम , गृहदाह , शेष प्रश्न , दत्ता , देवदास , ब्राह्मण की लड़की , सती , विप्रदास , देना पावना आदि प्रमुख हैं।
- शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय , बैकुंठेर बिल , मेज दीदी , दर्पचूर्ण , अभागिनी का स्वर्ग , श्रीकांत , अरक्षणीया , निष्कृति , मामलार फल , अनुपमा का प्रेम , गृहदाह , शेष प्रश्न , दत्ता , देवदास , ब्राह्मण की लड़की , सती , विप्रदास , देना पावना आदि प्रमुख हैं।
- ( 1954), नव विधान (1954), सती (1954) ोढ़शी (1954), मामलाट फल (1955), बड़ा दीदी (1957), चंद्रनाथ (1957), राजलक्ष्मी ओ श्रीकान्त (1958), छबि (1959), इन्द्रनाथ, श्रीकान्त ओ अन्नदा दीदी (1959), गृहदाह (1967), कमललता (1969), मा ओ माई (1969), सब्यसाची (1977), रामेर सुमति (1977), निष्कृति (1978), देवदास (हिन्दी) (1979), दर्पचूर्ण (1980), बैकुंठेर विल (1985), अनुराधा (1986) फिल्मों ने सफलता व लोकप्रियता के नये आयाम छुए।
- इसलिए यह अकस्मात् नहीं है कि जया व्हीटन कहीं-कहीं इस आग्रह में व्यावसायिकता के निकट पहुँच जाने वाले अति-अलंकरण से नहीं बच पातीं , और नारी-सुलभ-पच्चीकारी ही ऐसे चित्रों की निष्कृति बन जाती है, लेकिन अपने कई तैलचित्रों में इस ‘खतरे' से बची भी रह सकी हैं, इसलिए जया व्हीटन में अपनी समूची ‘स्थूल' दृश्यात्मकता के बावजूद कथ्य को रूपायित करने का संकल्प है।
- घोर विषमता , जड़ता , निष्क्रियता और निराशा के बीच भी क्या अन्तिम आशा का स्वर चुप हो जाया करता है ! मैं आशावादी हूँ ! आपके संकल्पों में छुपा हुआ निषेध आपस में ही टक्ररायेगा-मैं जानता हूँ ! मैं यह भी जानता हूँ कि ये स्वर आपके अन्तस में स्वीकार न हो पायेंगे ! बंकर की छत पर ऐश्वर्या की आँखें सजाने वाले मेजर इन निषेध-भावों की निष्कृति से उगायेंगे सूर्य ! अंधकार का विवर कितना भी चौड़ा क्यों न हो !
- संवादहीनता की निष्कृति होती है ' बस प्रथाओं में रहो उलझे / यहाँ ऐसी प्रथा है ‘ की नियति में ' पुतलियाँ कितना कहाँ / इंगित करेंगी .... ‘ , की व्यथा का लेखा-जोखा लेती उँगलियों के उम्र भर घिसने की त्रासदी से अभिशप्त ' बाँह रखकर कान पर सोया शहर ‘ में दूध से उजले धुले संबंध ‘ भी तो वर्तमान परिदृश्य में अनर्गल हो गये हैं और ' रंग की संयोजना के ‘ उद्धरण यानि जीवन के सतरंगी सम्मोहक आकर्षण भी टूट कर दुहरा गए हैं।