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निभृत meaning in Hindi

pronunciation: [ nibherit ]
निभृत meaning in English

Examples

  1. पुरुरवा ठीक-ठीक यह नहीं बता सकता हूँ इतना ही है ज्ञात , तुम्हारे आते ही अंतर का द्वार स्वयं खुल गया और प्राणॉ का निभृत निकेतन् अकस्मात , भर गया स्वरित रंगॉ के कोलाहल से .
  2. भूल गए क्यॉ दयित , हाय , उस नीरव , निभृत निलय में बैठी है कोई अखंड व्रतमयी समाराधन में , अश्रुमुखी माँगती एक ही भीख त्रिलोक-भरन से , कण्-भर भी मत अकल्याण् हो प्रभो ! कभी स्वामी का .
  3. भूल गए क्यॉ दयित , हाय , उस नीरव , निभृत निलय में बैठी है कोई अखंड व्रतमयी समाराधन में , अश्रुमुखी माँगती एक ही भीख त्रिलोक-भरन से , कण्-भर भी मत अकल्याण् हो प्रभो ! कभी स्वामी का .
  4. अपने पूर्वविचार पर लज्जित हो उठी मैं ! पश्चिमी घाट के साइलेंट वेली नेशनल पार्क की याद आ गई - अभी तक अगम्य रहा भारत का एक मात्र ऊष्ण-कटिबंधीय वन -जिसकी निभृत हरीतिमा अभी तक इंसान नामक जीव के पगों से अछूती है .
  5. काल पुरुष के पैरों से बंधे हुए पंख दृश्य झिलमिले इधर-उधर चमक रहे जो सीपी शंख कल होंगे गले पीड़ा है गत की सौगात कथ्य निभृत पर्त-पर्त केलों के पात अहं किन्तु शेष वही ज्योति रेख बढ़ते हम देख उसको ही देख-देख-देख चरैवेति चरैवेति चरैवेति
  6. आज इस निभृत एकांत में तुम से दूर पड़ी हूँ और तुम क्या जानो कैसे मेरे सारे जिस्म में आम के बौर टीस रहे हैं और उन की अजीब-सी तुर्श महक तुम्हारा अजीब सा प्यार है जो सम्पूर्णत : बाँध कर भी सम्पूर्णत: मुक्त छोड़ देता है!
  7. आज इस निभृत एकांत में तुम से दूर पड़ी हूँ और तुम क्या जानो कैसे मेरे सारे जिस्म में आम के बौर टीस रहे हैं और उन की अजीब-सी तुर्श महक तुम्हारा अजीब सा प्यार है जो सम्पूर्णत : बाँध कर भी सम्पूर्णत: मुक्त छोड़ देता है!
  8. आज इस निभृत एकांत में तुम से दूर पड़ी हूँ और तुम क्या जानो कैसे मेरे सारे जिस्म में आम के बौर टीस रहे हैं और उन की अजीब-सी तुर्श महक तुम्हारा अजीब सा प्यार है जो सम्पूर्णत : बाँध कर भी सम्पूर्णत : मुक्त छोड़ देता है !
  9. कुरुक्षेत्र के ऐश्वर्य-प्रधान परिवेश में , जहाँ श्रीकृष्ण का राजवेश था , हाथी , घोड़े और जन-कोलाहल था , श्रीकृष्ण से मिलन उन्हें उतना सुखकर प्रतीत नहीं हो रहा था , जितना मधुर वृन्दावन के निभृत निकुंजों में होता था , जहाँ उनका गोपवेश और मुरली का मधुर रव था।
  10. आज इस निभृत एकांत में तुम से दूर पड़ी मैं : और इस प्रगाढ़ अँधकार में तुम्हारे चंदन कसाव के बिना मेरी देहलता के बड़े-बड़े गुलाब धीरे-धीरे टीस रहे हैं और दर्द उस लिपि का अर्थ खोल रहा है जो तुम ने आम्र मंजरियों के अक्षरों में मेरी माँग पर लिख दी थी
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