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जल-राशि meaning in Hindi

pronunciation: [ jel-raashi ]
जल-राशि meaning in English

Examples

  1. आस-पास किसी को खोजते हैं : कोई है जो इस वेगवती जल-राशि की संञा से मुझे परिचित करायेगा ! अक्सर कोई मिलता नहीं है और जब कोई मिलता है तो प्यास नहीं बुझती ! यह तो अनाम है .
  2. दुर्लभ पशु-पक्षियों के अलावा अपार जल-राशि , मछलियां, कछुए, हरी-भरी वनस्पतियां, हर मौसम में खिलने वाले लोक लेई, पुलैई व खोयमौम जैसे जंगली फूल और चारों ओर छोटी-बडी पहाडियों का अलौकिक सौन्दर्य केबुल लामजाओ को बेहद आकर्षक बना देता है।
  3. दुर्लभ पशु-पक्षियों के अलावा अपार जल-राशि , मछलियां , कछुए , हरी-भरी वनस्पतियां , हर मौसम में खिलने वाले लोक लेई , पुलैई व खोयमौम जैसे जंगली फूल और चारों ओर छोटी-बडी पहाडियों का अलौकिक सौन्दर्य केबुल लामजाओ को बेहद आकर्षक बना देता है।
  4. व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
  5. व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
  6. व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।
  7. इटावा जिले में साहों गांव के पास चंबल नदी अपनी भारी-भरकम जल-राशि के साथ यमुना से मिलती है तो यमुना को जैसे यहां नवजीवन मिलता है व सिंध , केन, बेतवा जैसी अन्य सहायक नदियों के भी मिल जाने से प्रयागराज में गंगा से संगम होने तक यमुना की स्थिति काफी ठीक बनी रहती है।
  8. इटावा जिले में साहों गांव के पास चंबल नदी अपनी भारी-भरकम जल-राशि के साथ यमुना से मिलती है तो यमुना को जैसे यहां नवजीवन मिलता है व सिंध , केन , बेतवा जैसी अन्य सहायक नदियों के भी मिल जाने से प्रयागराज में गंगा से संगम होने तक यमुना की स्थिति काफी ठीक बनी रहती है।
  9. धरती , आकाश और पाताल , तीनों में प्रवाहित हो रहा है वह तरल जल-प्रवा ह. गगन मार्ग से ही उतरी थीं गंगा . भस्मालेपी के जटा-जूट में समा कर उस आलेपन को धारण कर लिया अपनी अपार जल-राशि में . वही श्वेतिमा लहर-जाल में समा गई जिसका विस्तार सारे आकाश को आपूर्ण किए है .
  10. सोहराय पर्व को मनाने के पीछे भी एक बहुत ही रोचक कथा है- लोक मान्यता हैं , ठाकरान(आदिदेवी) की हंसली हड्डी (गले की हड्डी) के मैल से बने हांस-हांसिल (हंस-हंसिनी) पक्षियों ने विशाल जल-राशि पर तैरते हुए बिरना (खस घास) के झाड़ में अपना घोंसला बनाया था जहां हांसिल (हंसिनी) ने दो अंडे दिए थे, जिनसे दो मानव शिशु उत्पन्न हुए थे।
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