जगजननी meaning in Hindi
pronunciation: [ jegajenni ]
Examples
- यहीं भगवान शिव की आज्ञा से महायोगी गुरु गोरखनाथ ने सर्वप्रथम देवी की पूजा-अर्चना के लिए एक मठ का निर्माण कराकर स्वयं लम्बे समय तक जगजननी की पूजा करते हुए साधनारत रहे।
- रामायण में एक कथा प्रसिद्ध है- श्री हनुमान जी ने जगजननी श्री सीता जी के मांग में सिंदूर लगा देखकर आश्चर्यपूर्वक पूछा- माता ! आपने यह लाल द्रव्य मस्तक पर क्यों लगाया है ?
- मत भूलो रचनाकार प्रथम श्री रामचरित रामायण के , थे महापुरुष श्री बाल्मीकि ऋषि , ज्ञानमूर्ति , रामायण के हो शूद्र कुलोदभव , फिर भी जगजननी को पुत्री सा समझा उनके वंशज अपमानित कर , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
- ठीक इसी प्रकार जब मुझे तुम्हारा स्वरुप जगजननी वाला बनाना था , उसका समय आ गया ,तुम्हे कुछ विशेष करने की आवश्यकता पड़ेगी ही नहीं ! जिस प्रकार गति से चल रही गाड़ी को धक्का मारने की आवश्यकता नहीं होती!
- लोक मान्यता है कि वर्ष १९४० से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था , सर्वप्रथम जंगलात विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ।
- शेखर कुमावत माँ ऐसा वरदान दिजो माँ ऐसा वरदान दिजो , जो नित करूँ सेवा तेरी | तन मन धन सब अर्पित करूँ, चरणों मे तेरी || हो सबकी इच्छा पूरी ,करूँ हाथ जोड़ ये विनती | माँ जगजननी कृपा करो, आया मै शरण तेरी ||
- लोक मान्यता है कि वर्ष १ ९ ४ ० से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था , सर्वप्रथम जंगलात विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों तथा स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा और उन्हें माता जगजननी की इस स्थान पर उपस्थिति का एहसास हुआ।
- उक्त प्रमुख मंदिर का निर्माण मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानुकुमारी ने संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी होने पर , उसी जगह कराया , जहां जगजननी जानकी की प्रेरणा से उनकी ही एक प्रतिमा तीर्थराज प्रयाग के साधु सुरकिशोर दास जी ने एक पेड़ की जड़ में पाई।
- का बल विश्वास बढ़ाती हो दुष्टो पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो हे जगजननी , रणचण्डी , रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे जग के कण कण में महाशक्ति कीव्याप्त अमर तुम चिनगारी ढ़१ड़ निस्चय की निर्भय प्रतिमा , जिससे डरते अत्याचारी हे शक्ति स्वरूपा , विश्ववन्द्य , कालिका , मानिनि माँ दुर्गे तुम परब्रम्ह की परम ज्योति , दुष्टो से जग की त्राता हो पर
- मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर देवी जगजननी ने महाविद्या काली फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को त्रैलोक्य-मोहिनी शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं तदनन्तर महामाया भगवान श्रीहरि के नेत्र , मुख , नासिका और बाहु आदि से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने आ जाती हैं और तभी भगवान विष्णु भी योगनिद्रा से जग जाते हैं तथा अपने समक्ष विशाल दानव रूप मधु और कैटभ को देखते हैं व दोनों महादैत्यों के साथ युद्ध करते हैं .