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गुंजरित meaning in Hindi

pronunciation: [ gaunejrit ]
गुंजरित meaning in English

Examples

  1. मृत्यु तुम आना किसी यक्ष की तरह गुनगुनाते हुए अपनी यक्षिणी की तलाश में या जैसे ऋचाओं को गुंजरित करता कोई दिव्य बटुक भिक्षा के लिए खटखटाए किसी भाग्यवान का द्वार।
  2. यह कदंब के पेड़ से गुंजरित बाँसुरी का वह पावन निनाद है जिसे सुनते ही गोपियां घर का सारा काम छोड़ कर उसी कदंब के पेड़ की ओर दौड़ती चली जाती हैं ।
  3. उनकी आत्मा अब नरक में पड़ी सड़ रही है , और यहां तक कि अफलातूं भी , जिसने संसार को अपनी परगल्भता से गुंजरित कर दिया था , अब पिशाचों के साथ तूतू मैंमैं कर रहा है।
  4. मैं अपने कानों को खोलकर माँ की आ रही आवाज में बुआ का आवाज को सुनने का प्रयास कर रहा था . ..कुछ क्षणों के लिए आवाज का स्वर बदलकर सवा महीने पूर्व के बुआ के स्वर में गुंजरित हो गया....
  5. “ओ विशाल तरु ! शत सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा, कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी, दिन भौंरे कर गये गुंजरित, रातों में झिल्ली ने अनथक मंगल-गान सुनाये, साँझ सवेरे अनगिन अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा काकलि डाली-डाली को कँपा गयी-
  6. सुनीति बाबू लिखते हैं और रामदेवाजी तथा उनके चंदर-मंदर जैसे शिष्यगण इसे करके दिखाते हैं कि निषाद मन एक ओर तो बड़ा परिश्रमी तथा धीर मन रहा है , दूसरी ओर वह खुशमिजाज , बेपरवाह , मनमौजी , सदैव ' अरे , वाह वाह ' गीत गुंजरित , नृत्यकंपित और कभी-कभी उन्मत्त-प्रमत्त भी रहने का आदी है।
  7. यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त में युद्ध और पुरु , भरत और तृत्सु , तर्वसु और अनु , द्रह्यू और जन्हू तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं जहाँ वशिष्ठ , जमदग्नि , अंगिरा , गौतम और कण्डव आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं।
  8. डॉ . कुट्टन लिखते हैं- ' पंत की काव्य दृष्टि , वीचि-विलास उषा की स्मित-किरण , ज्योर्तिमय नक्षत्र , फलों की मृदु मुस्कान , पत्रों के आनत अधर , अपलक अनंत , तत्वंगी गंगा , स्निग्ध चांदी के कगार , कल-कल , छल-छल बहती निर्झरणी , मेखलाकार पर्वत , अपार , लास्यनिरत लोल-लोल लहरें , मंजु गुंजरित मधुप की मार हम सब पर पड़ती है और कवि असीम आत्मीयता का आनंद अनुभव करता है।
  9. हें प्रभात तेरा अभिनंदन किरण भोर की , निकल क्षितिज से उलझी ओस कणों के तन से फूलों की क्यारी तब उसको, देती अपना मौन निमंत्रण हें प्रभात तेरा अभिनंदन भौरों के स्वर हुये गुंजरित खग-शावक भी हुए प्रफुल्लित श्यामा भी अपनी तानों से,करती जैसे रवि का पूजन हें प्रभात तेरा अभिनंदन ज्योति-दान नव पल्लव पाया तम की नष्ट हुयी हैं काया गोदी में गूजी किलकारी, करती हैं तेरा ही वंदन हें प्रभात तेरा अभिनंदन विक्रम[पुन:प्रकाशित]
  10. वे सत्य ही कह रहे थे| ' फिर आता है 'ना' यानी 'नाद', 'अनहद नाद' अर्थात दिव्य संगीत, एक आनंदमय, शक्तिप्रद गुन्जरण, जो कि ऐसे व्यक्ति के आत्म में, जो नित्य गुरु मंत्र का जप करता है, गुंजरित होता रहता है| यह नाद वास्तव में व्यक्ति की वास्तविकता पर बहुत निर्भर करता है| उदाहरणतः जो व्यक्ति भक्ति के पथ पर कायल हो, उसे साधारणतः बांसुरी जैसी ध्वनि सुनाई देती है, जो भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय वाद्य है| इसके अतिरिक्त ज्ञान मार्ग पर अग्रसर होने वाले (ज्ञानी) को अधिकतर ज्ञान स्वरुप भगवान शिव का डमरू का शाश्वत नाद सुनाई पड़ता है|'
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