कांतियुक्त meaning in Hindi
pronunciation: [ kaanetiyuket ]
Examples
- श्यामवर्ण की भव्य कांतियुक्त तेजोपु * ज मूर्ति के दर्शनमात्रा से हर कोई दर्शनार्थी आत्मविभोर हो सहज ही आकर्षण के पाश में बंध कर चैतन्य तत्व का आभास पाता ह।
- सभ्यता के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावत : अपने शरीर के अंगों को शुद्ध, स्वस्थ, सुडौल और सुंदर तथा त्वचा को सुकोमल, मृदु, दीप्तिमान और कांतियुक्त रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है।
- सभ्यता के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावत : अपने शरीर के अंगों को शुद्ध, स्वस्थ, सुडौल और सुंदर तथा त्वचा को सुकोमल, मृदु, दीप्तिमान और कांतियुक्त रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है।
- सन् ६ ८ ६ में वैशाख शुक्ल पंचमी ( कुछ लोगों के अनुसार अक्षय तृतीया ) के दिन मध्याकाल में विशिष्टादेवी ने परम प्रकाशरूप अति सुंदर , दिव्य कांतियुक्त बालक को जन्म दिया।
- सभ्यता के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावत : अपने शरीर के अंगों को शुद्ध , स्वस्थ , सुडौल और सुंदर तथा त्वचा को सुकोमल , मृदु , दीप्तिमान और कांतियुक्त रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है।
- तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥ भावार्थ : जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त , कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है , उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥ 41 ॥ अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
- तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥ भावार्थ : जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त , कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है , उस-उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति जान॥ 41 ॥ अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
- से भी अधिक चमकीला जिनका मनोज्ञ पीताम्बर है , जिनका वदनचन्द्र निर्मल शारदीय पूर्ण चन्द्रमा की अपेक्षा भी समुज्जवल तथा चित्रविचित्र सुन्दर मुरली के द्वारा सुशोभित है,जो मयूरपिच्छ से सुभूषित हैं और जिनके गले में निर्मल कांतियुक्त श्रेष्ठ मोतियों की माला चमक रही है, वे मदनमोहन मेरे नेत्रों की दर्शन स्पृहा बढा
- साफ़ , स्वच्छ , सुडोल , सुंदर , त्वचा को चमकदार , सुकोमल , दीप्तिमय , मृदु और कांतियुक्त रखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा है वैसे तो किसी मनुष्य का सौंदर्य उसकी मानसिक शुद्धि और आंतरिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है फिर भी ये अंगराग और विभिन्न सुगंधे भी उस के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए विशेष महत्व रखती है |
- शारीरिक त्वचा की स्वच्छता और मृत कोशिकाओं का उत्सर्जन , स्वेद ग्रंथियों को खुला और दुर्गंधरहित करना, धूप, सरदी और गरमी से शरीर का प्रतिरक्षण, त्वचा के स्वास्थ्य के लिए परमावश्यक वसा को पहुँचाना, उसे मुहाँसे, झुर्रियों और काले तिलों जैसे दागों से बचाना, त्वचा को सुकोमल और कांतियुक्त बनाए रखना, उसे बुढ़ापे के आक्रमणों से बचाना और बालों के सौंदर्य को बनाए रखना इत्यादि अंगरागों के प्रभाव से ही संभव है।