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उपलक्षित meaning in Hindi

pronunciation: [ upelkesit ]
उपलक्षित meaning in English

Examples

  1. जो दृश्य - सृष्टिका कारण है , जो दृश्य - सृष्टिका द्रष्टा है वो दोनोँ एक है जुदा - जुदा नहीँ है - कारणत्व उपलक्षित चैतन्य और प्रमातृत्व उपलक्षित चैतन्य हमारे शरीरके भीतर जो जानकार है उस जानकारसे जिस चैतन्यको सूचना होती है और सारी सृष्टिमेँ जो सर्वज्ञ - सर्वशक्तिमान चैतन्यकी सूचना होती है उन दोनोँमेँ एक ही चैतन्य ब्रह्म है ।
  2. सत्य को सत्यता की सत्ता से भी उपलक्षित करने के लिए श्रेष्ठ को श्रेष्ठता की श्रेणी से भी उपदर्शित करने के लिए और सुन्दर को सुंदरता की समृद्धि से भी उपपादित करने के लिए विभिन्न रूपों और विभिन्न स्तरों पर शब्दों एवं अर्थों के सहभावों व समभावों की अभिनव अभिव्यक्ति अनवरत होते रहना चाहिए और चिर प्रतिद्वंद्वी अन्धकार मिटता रहे इसलिए कवित्व-दीप सतत जलते रहना चाहि ए . ...
  3. जैसा कि हमने देखा , होमेरिक हिम ( Homeric Hymn ) , में यह उपलक्षित होता है कि भविष्यवाणी के लिये प्रयुक्त विधि डोडोना ( Dodona ) में प्रयुक्त विधि के समान थी : एशीलस ( Aeschylus ) और यूरिपाइड्स ( Euripides ) दोनों , पांचवी सदी के लेखन में , डेल्फी में प्रयुक्त विधियों जैसी ही विधियों का प्रयोग उनके काल में किये जाने का श्रेय आदिम काल को देते हैं .
  4. अर्थात - ( क ) देव मनुष्य आदि प्राणियों की मृत्यु के अनंतर दो गति होती है ( ख ) इस जनम जगत के प्राणियों की अग्नि , ज्योति , दिन शुक्ल-पक्ष और उत्तरायण के उपलक्षित अपुनरावृत्ति-फलक प्रथाम्गति तथा धूम , कृष्णपक्ष और दक्षिणायन से उपलक्षित भेदन करके सर्वदा के लिये जन्म मरण के बंधन से छूट जाता है और दुसरे मार्ग से प्रयास करने वाला जीवन कर्मानुसार पुहन जन्म मरण के चक्र में न पड़कर आ-ब्रह्मलोक परिभ्रमण करता रहता है।
  5. अर्थात - ( क ) देव मनुष्य आदि प्राणियों की मृत्यु के अनंतर दो गति होती है ( ख ) इस जनम जगत के प्राणियों की अग्नि , ज्योति , दिन शुक्ल-पक्ष और उत्तरायण के उपलक्षित अपुनरावृत्ति-फलक प्रथाम्गति तथा धूम , कृष्णपक्ष और दक्षिणायन से उपलक्षित भेदन करके सर्वदा के लिये जन्म मरण के बंधन से छूट जाता है और दुसरे मार्ग से प्रयास करने वाला जीवन कर्मानुसार पुहन जन्म मरण के चक्र में न पड़कर आ-ब्रह्मलोक परिभ्रमण करता रहता है।
  6. यदि कहीं पूर्व जन्मों के किए हुए पुण्यों के प्रसाद से , अमृत तुल्य मूखत भगवान् शिव के दर्शन हो जायें, और वे प्रस हो जायें, सन्त रूपी सद्गुण सज्जनवृन्दों से सेवित ;या तारागणों से सेवितद्ध मृगध्र परिपूर्ण चन्द्र से उपलक्षित ज्ञानवान् अज्ञानान्ध्कार को दूर कर दे, तब अज्ञान के दूर होते ही हृदय की ग्रन्थियों के गलित होने पर, चित्त खिले हुए कमल के समान स्वच्छ व प्रस हो जाय, तो तभी आनन्दमय समुद्र की लहरें उमड़ सकती हैं, तदन्तर हीं कहीं विद्वानों या योगियों की धरणा ब्राकार हो सकती है।
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