इच्छारहित meaning in Hindi
pronunciation: [ ichechhaarhit ]
Examples
- बरखा दीदी ने सर पे हलकी चपत लगाई- “ ऐसे नहीं कहते . ” मैत्रेयी बोल पड़ी- “ मैं इस इच्छारहित जीवन और निर्वाण का क्या करुँगी ? मेरी समझ से तो हर इच्छा पूरी करनी चाहि ए. ”
- आप एक ( अद्वय ) , मायिक जगत से विलक्षण , प्रभु , इच्छारहित , ईश्वर , व्यापक , सदा समस्त विश्व को ज्ञान देने वाले , तुरीय ( तीनों अवस्थाओं से परे ) और केवल अपने स्वरूप में स्थित हैं॥ ९ ॥
- आप एक ( अद्वय ) , मायिक जगत से विलक्षण , प्रभु , इच्छारहित , ईश्वर , व्यापक , सदा समस्त विश्व को ज्ञान देने वाले , तुरीय ( तीनों अवस्थाओं से परे ) और केवल अपने स्वरूप में स्थित हैं॥ ९ ॥
- उसने सब अध्ययन कर लिया , उसने सब पढ़ाई कर ली और सारे अनुष्ठान कर लिये जिसने सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके इच्छारहित आत्मा-परमात्मा में आने का ठान लिया - ऐसा तीव्र विवेक ! ईश्वरप्राप्ति के उस तीव्र विवेक को जगाने के लिये ये सात साधन हैं।
- पुनर्जन्मों के कारण बहुत प्रकार के तमोगुण से आवेष्टित ये स्थावर जीवन जब वह परमात्मा जागकर सृष्टि उत्पत्ति आदि की इच्छा करता है तब यह समस्त संसार चेष्टायुक्त होता है और जब यह शान्त आत्मावाला सभी कार्यों से शान्त होकर सोता है , अर्थात् इच्छारहित होता है , तब यह समस्त संसार प्रलय को प्राप्त होता है।
- उन ( आप ) को जो एक ( अद्वितीय ) , अद्भूत ( मायिक जगत् में विलक्षण ) , प्रभु ( सर्वसमर्थ ) , इच्छारहित , ईश्वर ( सबके स्वामी ) , व्यापक , जगद्गुरू , सनातन ( नित्य ) , तुरीय ( तीनों गुणों से सर्वथा परे ) और केवल ( अपने स्वरूप में स्थित ) हैं।
- उन ( आप ) को जो एक ( अद्वितीय ) , अद्भूत ( मायिक जगत् में विलक्षण ) , प्रभु ( सर्वसमर्थ ) , इच्छारहित , ईश्वर ( सबके स्वामी ) , व्यापक , जगद्गुरू , सनातन ( नित्य ) , तुरीय ( तीनों गुणों से सर्वथा परे ) और केवल ( अपने स्वरूप में स्थित ) हैं।
- और इसके उत्तर में श्रीराम कहते हैं कि संत वह है जिसने षट विकारों ( काम , क्रोध , लोभ , मद , मोह , मत्सर आदि ) पर विजय प्राप्त कर ली हो , जो निष्पाप और निष्काम हो , सांसारिक वैभव से विरक्त , इच्छारहित और नियोगी हो , दूसरे का सम्मान करने वाला मदहीन हो , अपने गुणों के श्रवण करने में संकोच करता हो और दूसरों के गुण-श्रवण में आनंदित होता हो , कभी नीति का परित्याग न करता हो , सभी प्राणियों में प्रेम-भाव रखता हो।
- और इसके उत्तर में श्रीराम कहते हैं कि संत वह है जिसने षट विकारों ( काम , क्रोध , लोभ , मद , मोह , मत्सर आदि ) पर विजय प्राप्त कर ली हो , जो निष्पाप और निष्काम हो , सांसारिक वैभव से विरक्त , इच्छारहित और नियोगी हो , दूसरे का सम्मान करने वाला मदहीन हो , अपने गुणों के श्रवण करने में संकोच करता हो और दूसरों के गुण-श्रवण में आनंदित होता हो , कभी नीति का परित्याग न करता हो , सभी प्राणियों में प्रेम-भाव रखता हो।
- जैसे पके हुए धान के खेत की रक्षा करने वाली स्त्री को , जो पक्षियों को उड़ाने के लिए कोई दूसरा व्यापार नहीं करती है विस्तृत करतलध्वनि से युक्त गान से आयुषंगिक पक्षियों का निरास और गान का आनन्द एक ही काल में होता है वैसे ही ज्ञानप्राप्ति में विघ्नभूत राग , मान आदि के निराकरण से इच्छारहित अतएव कर्तान होते हुए भी किये गये ज्ञान के हेतु श्रवण और सदाचार से कर्तारूप अर्थात् केवल श्रवण और सदाचारमात्र का कर्तारूप पुरुष आनुषंगिक विघ्नों के निरास द्वारा परम पद को प्राप्त होता है।।