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अवहेलित meaning in Hindi

pronunciation: [ avhelit ]
अवहेलित meaning in English

Examples

  1. सारे पुरस्कार अपने अपने क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार माने जाने चाहिये ! ऐसा नहीं होना चाहिये कि जिसे पद्मश्री मिल गया वह स्वयं को उस व्यक्ति के सामने छोटा और अपमानित या अवहेलित महसूस करे जिसे समान धर्मी होने के बावजूद भी भारत रत्न मिल गया हो ! ये सारे ही तरीके त्रुटिपूर्ण प्रतीत होते हैं !
  2. सारे पुरस्कार अपने अपने क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार माने जाने चाहिये ! ऐसा नहीं होना चाहिये कि जिसे पद्मश्री मिल गया वह स्वयं को उस व्यक्ति के सामने छोटा और अपमानित या अवहेलित महसूस करे जिसे समान धर्मी होने के बावजूद भी भारत रत्न मिल गया हो ! ये सारे ही तरीके त्रुटिपूर्ण प्रतीत होते हैं !
  3. आत्म वंचना करके किसने क्या पायाकुंठा और संत्रास लिए मन कुह्सायाइतना पीसा नमक झील खारी कर डालीजल राशिः में खड़ा पियासा वनमालीनहीं सहेजे सुमन न मधु का पान कियासर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलायासूर्या रश्मियाँ अवहेलित कर , निशा क्रयित कीअप्राकृतिक आस्वादों पर रूपायित कीअपने ही हाथों से अपना दिवा विदा करनिज सत्यों को नित्य निरंतर झुठलायापागल की गल सुन कर गलते अहंकार कोपीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार कोप्रपंचताओं के नागों से शृंगार कियाअविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया
  4. एक विकल्प और भी है - जो बहुत दर्दनाक है और वह है कि हम जानें कि बड़ी तादाद में अवहेलित पीड़ित हो रहे लोग किसी भी संप्रदाय या समुदाय के क्यों ना हों कभी न कभी अपने हकों की माँग लिए उठते हैं और तब कई तरह की विकृतियों को हमें झेलना पड़ता है , पर अंततः हमें इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है कि अन्याय के बल पर कोई भी व्यवस्था हमेशा टिकी नहीं रह सकती .
  5. एक विकल्प और भी है - जो बहुत दर्दनाक है और वह है कि हम जानें कि बड़ी तादाद में अवहेलित पीड़ित हो रहे लोग किसी भी संप्रदाय या समुदाय के क्यों ना हों कभी न कभी अपने हकों की माँग लिए उठते हैं और तब कई तरह की विकृतियों को हमें झेलना पड़ता है , पर अंततः हमें इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है कि अन्याय के बल पर कोई भी व्यवस्था हमेशा टिकी नहीं रह सकती .
  6. इसी तरह हम चाहें तो हम तुलना करते रहेंगे कि कौन ज्यादा पीड़ित है पंडित या मुसलमान . एक विकल्प और भी है - जो बहुत दर्दनाक है और वह है कि हम जानें कि बड़ी तादाद में अवहेलित पीड़ित हो रहे लोग किसी भी संप्रदाय या समुदाय के क्यों ना हों कभी न कभी अपने हकों की माँग लिए उठते हैं और तब कई तरह की विकृतियों को हमें झेलना पड़ता है, पर अंततः हमें इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है कि अन्याय के बल पर कोई भी व्यवस्था हमेशा टिकी नहीं रह सकती.
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