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अवगुण्ठन meaning in Hindi

pronunciation: [ avegaunethen ]
अवगुण्ठन meaning in English

Examples

  1. लहरों के नीले अवगुण्ठन मेंजहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता थावहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं- और तुम मौन होमैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरेंफेन का शिरस्त्राण पहनेसिवार का कवच धारण किएनिर्जीव मछलियों के धनुष लिएयुद्धमुद्रा में आतुर हैं- और तुम कभी मध्यस्थ होकभी तटस्थकभी युद्धरत
  2. कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है फूलों से भी अधिक सुकोमल नरम अधिक नवनी से प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली अति इन्दु मनी से , नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है तनया-प्रिया-जननि के अवगुण्ठन में रहने वाली, सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी जीवन में बहने वाली विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।
  3. लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं - और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं - और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
  4. लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं - और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं - और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
  5. लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं - और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं - और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
  6. बहुत दिनों तक हुआ प्रणय का रास वासना के आंगन में , बहुत दिनों तक चला तृप्ति-व्यापार तृषा के अवगुण्ठन में, अधरों पर धर अधर बहुत दिन तक सोई बेहोश जवानी, बहुत दिनों तक बंधी रही गति नागपाश से आलिंगन में, आज किन्तु जब जीवन का कटु सत्य मुझे ललकार रहा है कैसे हिले नहीं सिंहासन मेरे चिर उन्नत यौवन का।
  7. बहुत दिनों तक हुआ प्रणय का रास वासना के आंगन में , बहुत दिनों तक चला तृप्ति-व्यापार तृषा के अवगुण्ठन में, अधरों पर धर अधर बहुत दिन तक सोई बेहोश जवानी, बहुत दिनों तक बंधी रही गति नागपाश से आलिंगन में, आज किन्तु जब जीवन का कटु सत्य मुझे ललकार रहा है कैसे हिले नहीं सिंहासन मेरे चिर उन्नत यौवन का।
  8. बहुत दिनों तक हुआ प्रणय का रास वासना के आंगन में , बहुत दिनों तक चला तृप्ति-व्यापार तृषा के अवगुण्ठन में , अधरों पर धर अधर बहुत दिन तक सोई बेहोश जवानी , बहुत दिनों तक बंधी रही गति नागपाश से आलिंगन में , आज किन्तु जब जीवन का कटु सत्य मुझे ललकार रहा है कैसे हिले नहीं सिंहासन मेरे चिर उन्नत यौवन का।
  9. सुनो , मैं अक्सर अपने सारे शरीर को - पोर-पोर को अवगुण्ठन में ढँक कर तुम्हारे सामने गयी मुझे तुमसे कितनी लाज आती थी , मैंने अक्सर अपनी हथेलियों में अपना लाज से आरक्त मुँह छिपा लिया है मुझे तुमसे कितनी लाज आती थी मैं अक्सर तुमसे केवल तम के प्रगाढ़ परदे में मिली जहाँ हाथ को हाथ नहीं सूझता था मुझे तुमसे कितनी लाज आती थी ,
  10. गौरवमंण्डित सुहागनी “ के करुण वैधव्य का सामना करने का साहस मुझे नहीं हो रहा था , मैं बड़ी हिम्मत करके अन्दर गयी और जिया के वलयशून्य हाथों ने मुझे लपेट लिया , उनकी आँखों से निरन्तर आँसू बहते रहे , साकेत की ” मूर्तिमति ममता माया ” आज अपना मुँह अवगुण्ठन में लपेटे वटवृक्ष की छाया से छिन्न लता सी क्लांत , शिथिल हो रही थी .
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