शृंगारी meaning in Hindi
pronunciation: [ sherinegaaari ]
Examples
- इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत संस्कृत , प्राकृत , अपभ्रंश , फारसी और हिंदी के आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं।
- शृंगारी कवि विद्यापति , [78] कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु सूरदास,[79] और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है।
- शृंगारी कवि विद्यापति [ घ] , कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है, किन्तु सूरदास [ङ] , और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है।
- शृंगारी कवि विद्यापति [ घ ] , कबीर वाणी और जायसी के पद्मावत में भी गंगा का उल्लेख है , किन्तु सूरदास [ ङ ] , और तुलसीदास ने भक्ति भावना से गंगा-माहात्म्य का वर्णन विस्तार से किया है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में हरिऔध जी का परिचय देते हुए लिखा है- “ यद्यपि उपाध्याय जी इस समय खड़ी बोली के और आधुनिक विषयों के ही कवि प्रसिध्द हैं , पर प्रारंभकाल में ये भी पुराने ढंग की शृंगारी कविता बहुत सुंदर और सरस करते थे।
- रचना बाहुल्य के आधार पर प्राय : यह मान लिया जाता है कि , ब्रजभाषा काव्य का विषय रूप-वर्णन , शोभा-वर्णन , शृंगारी चेष्टा-वर्णन , शृंगारी हाव-भाव-वर्णन , प्रकृति के शृंगारोद्दीपक रूप का वर्णन विविध प्रकार की कामिनियों की विलासचर्या का वर्णन , ललित कला-विनोदों का वर्णन और नागर-नागरियों के पहिराव , सजाव , सिंगार का वर्णन तक ही सीमित है।
- रचना बाहुल्य के आधार पर प्राय : यह मान लिया जाता है कि , ब्रजभाषा काव्य का विषय रूप-वर्णन , शोभा-वर्णन , शृंगारी चेष्टा-वर्णन , शृंगारी हाव-भाव-वर्णन , प्रकृति के शृंगारोद्दीपक रूप का वर्णन विविध प्रकार की कामिनियों की विलासचर्या का वर्णन , ललित कला-विनोदों का वर्णन और नागर-नागरियों के पहिराव , सजाव , सिंगार का वर्णन तक ही सीमित है।
- रचना बाहुल्य के आधार पर प्राय : यह मान लिया जाता है कि , ब्रजभाषा काव्य का विषय रूप-वर्णन , शोभा-वर्णन , शृंगारी चेष्टा-वर्णन , शृंगारी हाव-भाव-वर्णन , प्रकृति के शृंगारोद्दीपक रूप का वर्णन विविध प्रकार की कामिनियों की विलासचर्या का वर्णन , ललित कला-विनोदों का वर्णन और नागर-नागरियों के पहिराव , सजाव , सिंगार का वर्णन तक ही सीमित है।
- रचना बाहुल्य के आधार पर प्राय : यह मान लिया जाता है कि , ब्रजभाषा काव्य का विषय रूप-वर्णन , शोभा-वर्णन , शृंगारी चेष्टा-वर्णन , शृंगारी हाव-भाव-वर्णन , प्रकृति के शृंगारोद्दीपक रूप का वर्णन विविध प्रकार की कामिनियों की विलासचर्या का वर्णन , ललित कला-विनोदों का वर्णन और नागर-नागरियों के पहिराव , सजाव , सिंगार का वर्णन तक ही सीमित है।
- आँसू वास्तव में तो हैं शृंगारी विप्रलंभ के , जिनमें अतीत संयोगसुख की खिन्न स्मृतियाँ रह-रहकर झलक मारती हैं ; पर जहाँ प्रेमी की मादकता की बेसुधी में प्रियतम नीचे से ऊपर आते और संज्ञा की दशा में चले जाते हैं , जहाँ हृदय की तरंगें ‘ उस अनंत कोने ' को नहलाने चलती है , वहाँ वे आँसू उस ‘