प्राक्तन meaning in Hindi
pronunciation: [ peraaketn ]
Examples
- भाव यह कि यद्यपि प्राक्तन कर्म अनन्त हैं , फिर भी उनका मूल एक ही है उनके मूल का नाश करने से उन पर बड़ी आसानी से विजय प्राप्त की जा सकती है।
- जहाँ प्रयत्न करने पर भी कार्य विनाश होने पर प्रबल दैव कार्य विनाशक माना जाता है , वहाँ पर विघातक अन्य पुरुष का प्रयत्न ही ' दैव ' शब्द से कहा जाता है अथवा अपना प्राक्तन बलवान पौरुष ही दैव कहा जाता है।
- दोनों ( ऐहिक और प्राक्तन ) पौरुषों में से ऐहिक पौरुष ही प्रत्यक्षतः बलवान है , इसलिए जिस प्रकार युवक द्वारा बालक जीता जा सकता है , वैसे ही इस जन्म के प्रयत्नों द्वारा दैव ( पूर्वजन्म का प्रयत्न ) जीता जा सकता है।।
- श्री रामचन्द्रजी ने कहाः भगवन् , हे सर्वधर्मज्ञ , जो प्राक्तन कर्म है वही दैव है , ऐसा आपने बार बार कहा , फिर दैव है ही नहीं , इस प्रकार उसका आप अपलाप कैसे करते हैं यानी उसके अपलाप करने में आपका क्या अभिप्राय है ? ।।
- क्या भ्रूण की स्थिति ऐसे ही ‘ ऊर्ध्वमूलमध : शाखा ' वृक्ष की नहीं है जिसे पोषण देनेवाली ‘ भूमि ' ऊपर है और जिसे विस्तार का अवकाश देनेवाला ‘ आकाश ' नीचे है ? एक अवस्थिति की प्राक्तन समृति इस उलटे पेड़ के बिम्ब में संचित है ;
- निरन्तर प्रयत्न करने वाले , दृढ़ अभ्यासवाले एवं प्रज्ञा और उत्साह से युक्त पुरुष प्रलय में अधिकार रखने वाले देवताओं की पदवी को प्राप्त होकर महान् मेरू पर्वत तक को निगल जाते हैं , मटियामेट कर डालते हैं , प्राक्तन ( पूर्व जन्म के ) पौरुष की तो बात ही क्या है ?
- निरन्तर प्रयत्न करने वाले , दृढ़ अभ्यासवाले एवं प्रज्ञा और उत्साह से युक्त पुरुष प्रलय में अधिकार रखने वाले देवताओं की पदवी को प्राप्त होकर महान् मेरू पर्वत तक को निगल जाते हैं , मटियामेट कर डालते हैं , प्राक्तन ( पूर्व जन्म के ) पौरुष की तो बात ही क्या है ?
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- और तब दुगुने भयानक ओज से पहचान वाला मन सुमेरी-बेबिलोनी जन-कथाओं से मधुर वैदिक ऋचाओं तक व तब से आज तक के सूत्र छन्दस् , मन्त्र , थियोरम , सब प्रेमियों तक कि मार्क्स , एंजेल्स , रसेल , टॉएन्बी कि हीडेग्गर व स्पेंग्लर , सार्त्र , गाँधी भी सभी के सिद्ध-अंतों का नया व्याख्यान करता वह नहाता ब्रह्मराक्षस , श्याम प्राक्तन बावड़ी की उन घनी गहराईयों में शून्य।
- पुरुषप्रयत्न की स्वतन्त्रता की सिद्ध करने के लिए पहले कहीं पर ' दैव असत् है ' ऐसा कहा और कहीं पर प्राक्तन प्रयत्न जनित कर्म ही दैव एवं पुरुष प्रयत्न कहलाता है , ऐसा कहीं पर यह ठीक नहीं है , क्योंकि ' दैव असत् है ' इस प्रथम पक्ष को मानने से लोक और वेद में दैव की जो प्रबल प्रसिद्धि है , उसकी असंगति हो जायेगी और दुर्बल दैव के अभाव में उसकी अपेक्षा पुरुषप्रयत्न की प्रबलता का प्रतिपादन करनेवाली उक्ति के साथ विरोध होगा।