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तृणावर्त meaning in Hindi

pronunciation: [ terinaavert ]
तृणावर्त meaning in English

Examples

  1. पढ़ने-लिखने या शस्त्रास्त्रों की विद्या के अभ्यास के लिए महर्षि सान्दीपनि के आश्रम जाने से पहले उन्होंने गोकुल में पूतना , शकटासुर एवं तृणावर्त का वध किया।
  2. गोकुल में पूतना वध , शकट भंजन और तृणावर्त वध का तथा वृंदावन में बकासुर , अधासुर और धेनुकासुर आदि अनेक राक्षसों के हनन का वर्णन है।
  3. तीसरे प्रलम्बा , बकासुर, चाणूड़, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, अरिष्टासुर, द्विविद, पूतना, केशी, धेनुक, वाणासुर, भौमासुर आदि सभी दैत्य तथा राक्षस उसकी सहायता के लिये हर समय तत्पर रहते थे।
  4. बचपन में गोकुल में रहने के दौरान उन्हें मारने के लिए आततायी कंस ने शकटासुर , बकासुर और तृणावर्त जैसे कई राक्षस भेजे, जिनका संहार कृष्ण ने खेल-खेल में कर दिया।
  5. बचपन में गोकुल में रहने के दौरान उन्हें मारने के लिए आततायी कंस ने शकटासुर , बकासुर और तृणावर्त जैसे कई राक्षस भेजे , जिनका संहार कृष्ण ने खेल-खेल में कर दिया।
  6. वसुदेव का यशोदा के पास जाना , योगमाया का दर्शन, शकटासुर वध, यमलार्जुन मोक्ष, पूतना वध, तृणावर्त वध, वत्सासुर वध, बकासुर, अघासुर, व्योमासुर, प्रलंबासुर आदि का वर्णन, गोवर्धन धारण, रासलीला, होली उत्सव, अक्रूर गमन, मथुरा आगमन, मानलीला, दानलीला आदि लगभग सभी झाँकियाँ उकेरी गयीं हैं।
  7. द्वापर का अंतिक सीवान कंस के अत्याचार जरासंघ की दुरभि संधि , तृणावर्त , प्रलम्बासुर द्विविद जैसे आततायियों के द्वारा जनसामन्य को त्रसित कर अपना प्रभुत्व थोपने के कारण प्रजा में हुई विकलता के समनार्थ श्री बलराम एवं श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर भू- भार का शमन किया।
  8. द्वापर का अंतिक सीवान कंस के अत्याचार जरासंघ की दुरभि संधि , तृणावर्त , प्रलम्बासुर द्विविद जैसे आततायियों के द्वारा जनसामन्य को त्रसित कर अपना प्रभुत्व थोपने के कारण प्रजा में हुई विकलता के समनार्थ श्री बलराम एवं श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर भू- भार का शमन किया।
  9. अर्जुन के सारथी , अलौकिक रासलीला, कंस, कंस का वध, काली नाग आतंक, गांधारी का शाप, गीता उपदेश, गीता का उपदेश, गोकुल, जरासंध से युद्ध, तृणावर्त, दुर्योधन, दुर्योधन और दु:शासन, द्रौपदी का चीर हरण, द्वारका, नारायणी सेना, पूतना का वध, बकासुर, ब्रह्मांड के दर्शन, भगवान विष्णु के आठवें
  10. कुछ समय बाद वहाँ महावन में भी पूतना , शकटासुर तथा तृणावर्त आदि दैत्यों के उत्पाद को देखकर व्रजेश्वर श्रीनन्दमहाराज अपने पुत्रादि परिवार वर्ग तथा गो, गोप, गोपियों के साथ छटीकरा ग्राम में, फिर वहाँ से काम्यवन, खेलनवन आदि स्थानों से होकर पुन: नन्दीश्वर (नन्दगाँव) में लौटकर यहीं निवास करने लगे।
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