उत्पीड़ित वर्ग meaning in Hindi
pronunciation: [ utepideit verga ]
Examples
- इस विश्लेषण के उपरांत मार्क्स इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि स्थानीय सेवा-आधारित उद्योगों में हुई वृद्धि उसी अनुपात में उत्पीड़ित वर्ग की संख्या और उत्पीड़क-स्थितियों में वृद्धि करती जाती है .
- हमारी दृष्टि में , धरती पर स्वर्ग बनाने के लिए उत्पीड़ित वर्ग के इस वास्तविक क्रान्तिकारी संघर्ष में एकता परलोक के स्वर्ग के बारे में सर्वहारा दृष्टिकोण की एकता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
- उत्पीड़ित वर्ग का हर सदस्य अधिक मानवीय होगा यह समझ एक तरह का सरलीकरण है और रचनाशीलता में यही दिखाए जाने की मांग अस्मितावादी मांग है , जो यथार्थ की जटिलता को छुपाने की मांग भी है।
- यह देखना कठिन नहीं कि इन सुझावों का लक्ष्य अपराधियों की पकड़-धकड़ और समुचित सजा का प्रावधान नहीं , बल्कि उत्पीड़ित वर्ग को ही घर की चहारदीवारी की कैद में असूर्यंपश्या बनाकर चाभी ‘इज्जतदार' पुरुषों को थमा देना है।
- दूसरे तमाम अधिकार , व्यवहार में शासक वर्ग तक - यानि पंूजीपति वर्ग तक - ही सीमित बने रहे और उत्पीड़ित वर्ग से - सर्वहारा वर्ग से - प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से ये अधिकार छिने जाते रहें।
- चूंकि दक्षिणपंथी विचारों को प्रश्रय देने वाली पार्टियां दूसरी भी थीं तथा भारतीय साम्यवादी नेता समाज के उत्पीड़ित वर्ग का विश्वास जीतने में असफल सिद्ध हुए थे , इसलिए आजादी के साठ वर्ष बाद भी भारत में साम्यवादी राजनीति अपना असर छोड़ने में असमर्थ रही हैं .
- चूंकि दक्षिणपंथी विचारों को प्रश्रय देने वाली पार्टियां दूसरी भी थीं तथा भारतीय साम्यवादी नेता समाज के उत्पीड़ित वर्ग का विश्वास जीतने में असफल सिद्ध हुए थे , इसलिए आजादी के साठ वर्ष बाद भी भारत में साम्यवादी राजनीति अपना असर छोड़ने में असमर्थ रही हैं .
- राज्य , उत्पीड़ित वर्ग के दमन का औजार : बेहतर जीवन की ओर -16 इस श्रंखला की छठी कड़ी में ही हम ने यह देखा था कि मानव गोत्र समाज वर्गों की उत्पत्ति के उपरान्त वर्गों के बीच ऐसे संघर्ष को रोकने के लिए एक नई चीज सामने आती है।
- राज्य , उत्पीड़ित वर्ग के दमन का औजार : बेहतर जीवन की ओर -16 इस श्रंखला की छठी कड़ी में ही हम ने यह देखा था कि मानव गोत्र समाज वर्गों की उत्पत्ति के उपरान्त वर्गों के बीच ऐसे संघर्ष को रोकने के लिए एक नई चीज सामने आती है।
- जाति आधारित पदानुक्रम के अनुसार हालांकि संस्थागत रूप से जातियों के अधिकार और कर्तव्य तय हैं , फिर भी व्यक्तिगत रूप से अच्छे या बुरे कर्म करना किसी जाति से निर्धारित नहीं होता , ठीक यही स्थिति ‘ जेंडर ' की भी है ; न तो सारे दलित भले होते हैं और न ही सारी स्त्रियां , हालांकि संस्थागत रूप से दोनों ही उत्पीड़ित वर्ग हैं।