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आस्ते meaning in Hindi

pronunciation: [ aaset ]
आस्ते meaning in English

Examples

  1. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी, जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके, जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  2. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी, जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके, जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  3. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी, जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके, जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  4. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी, जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके, जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  5. अरे ! गिरने से क्या होगा ? एक हज़ार नौ सो छिपकलियाँ एक के बाद एक नाले के कीचड़ से निकलेंगी , फिर पानी में तैरकर तुम्हारे ऊपर चढ़कर आस्ते आस्ते तुम्हारे मुंह तक पहुंचकर अपने तेज़ नुकीले दाँतों से ...
  6. अरे ! गिरने से क्या होगा ? एक हज़ार नौ सो छिपकलियाँ एक के बाद एक नाले के कीचड़ से निकलेंगी , फिर पानी में तैरकर तुम्हारे ऊपर चढ़कर आस्ते आस्ते तुम्हारे मुंह तक पहुंचकर अपने तेज़ नुकीले दाँतों से ...
  7. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी , जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके , जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  8. कुम्हार जब अपनी कृति गढ़ता है तो उसे नर्म माटी दरकार होती है , शैशव सी मृदुता ली हुई माटी , जिसे समय की चाक पर फिराते हुये आस्ते आस्ते मनभावन रूप में गढ़ा जा सके , जिसे सारा संसार सराहे और मूल्यवान माने।
  9. नए साल की शुभ कामनाओ के साथ , फिर मिले गे ( आस्ते बोछोर आबार...) आप की माधवी श्री पत्रकार से बेहतर दिल्ली सरकार के बस ड्राईवर दिल्ली सरकार के बस ड्राईवरओ की शुरुआती तन्खावह पन्द्रह हज़ार रुपये होती है , फिर उसमे कुछ सेनिओर या बड़े वाहन से जुड़ा
  10. ‘ वंशी ' अर्थात् जिसने अपने को संयत कर लिया है , अपने विवेक द्वारा ( मनसा ) यह अनुभव करने लगता है कि किन्हीं भी कर्मों में उसका कोई कर्त्ताभाव नहीं है ( सन्नयस्य ) एवं वह नवद्वारों वाली नगरी में ( इस सुरदुर्लभ मनुष्य तन में ) सुखपूर्वक रहता है ( आस्ते सुखं ) ।
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