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स्वर्णाभ meaning in Hindi

pronunciation: [ sevrenaabh ]
स्वर्णाभ meaning in English

Examples

  1. ऋतु वसंत का सुप्रभात थामंद-मंद था अनिल बह रहाबालारुण की मृदु किरणें थींअगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थेएक-दूसरे से विरहित होअलग-अलग रहकर ही जिनकोसारी रात बितानी होतीनिशाकाल से चिर-अभिशापितबेबस उस चकवा-चकवी काबंद हुआ क्रंदन;
  2. हिन्दी उस परंपरा को देशभाषाओं के गला-घोटन के साथ ही कब का छोड़ आयी है , जिसमें कबीर थे , भक्ति काल का स्वर्णाभ था , जिसमें भिखारी ठाकुर रहे , रमई काका रहे।
  3. मेज पर एक ओर एक नीलाभ स्फटिक पात्र में कुछ सेव , नाशपाती, नारंगी और बहुत से अंगूरों के गुच्छे सजे हुए थे और उसकी बगल में दो प्याले और स्वर्णाभ मदिरा का एक कांच-पात्र अतिथि के लिए प्रतीक्षा रत था।
  4. शिमला , 16 सितम्बर (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर के सेब बाजार में उतर चुके हैं। लाल और स्वर्णाभ सेबों को दुनिया भर में इसके स्वाद, रंग और अधिक समय तक टिक सकने की क्षमता के लिए जाना जाता है। व्यापार प्रतिनिधियों ने यह जानकारी सोमवार को दी।
  5. डरता हूँ , उनमें से कोई, हाय सहसा न चढ़ जाय उत्तुंग शिखर की सर्वोच्च स्थिति पर, पत्थर व लोहे के रंग का यह कुहरा ! बढ़ न जायँ छा न जायँ मेरी इस अद्वितीय सत्ता के शिखरों पर स्वर्णाभ, हमला न कर बैठे ख़तरनाक कुहरे के जनतन्त्री वानर ये, नर ये !!
  6. थाम भेषज चषक आज धन्वन्तरि सिन्धु से फिर निकल आ रहा गांव में कर रहीं अनुसरण झांझियां बाँध कर कुछ उमंगों को पायल बना पांव में आज फिर हो हनन आसुरी सोच का रूप उबटन लगा कर निखरने लगा मुखकमल घिरता स्वर्णाभ , रजताभ से सूर्य बन कर गगन पर दमकने लगा
  7. ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणें थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक-दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती , निशा-काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान् सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
  8. ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणों थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती , निशा काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
  9. ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणें थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक-दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती , निशा-काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन , फिर उनमें उस महान् सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
  10. ऋतु वसंत का सुप्रभात था मंद-मंद था अनिल बह रहा बालारुण की मृदु किरणें थीं अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक दूसरे से विरहित हो अलग-अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती , निशा काल से चिर-अभिशापित बेबस उस चकवा-चकई का बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
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