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झुटपुट meaning in Hindi

pronunciation: [ jhuteput ]
झुटपुट meaning in English

Examples

  1. शाम के झुटपुट अँधेरे में वे साथ साथ तैरते , शर्त लगाते कि कौन आगे जाएगा , चहुलें करते बालू पर एक दूसरे को खदेड़ते पकड़ते और गुत्थमगुत्था हो जाते।
  2. सुबह के झुटपुट उजाले में जब वह पंडित टोले के पास से गुज़र रहा था तो लमजमुनिया के मोटे पेंड़ की आड़ से आवाज़ आई - रुकीं तनी ( जरा रुकिये!)।
  3. बांसों का झुरमुटसन्ध्या का झुटपुट है चहक रही चिड़िया टि्वी टि्वी टुट टुट बांस का जब कभी भी सन्दर्भ आता है तो कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां मुझे अक्सर याद आ जाती हैं।
  4. सुबह के झुटपुट उजाले में जब वह पंडित टोले के पास से गुज़र रहा था तो लमजमुनिया के मोटे पेंड़ की आड़ से आवाज़ आई - रुकीं तनी ( जरा रुकिये ! ) ।
  5. बां सों का झुरमुटसन्ध्या का झुटपुट है चहक रही चिड़िया ट्वि ट्वि टुट टुट बांस का जब कभी भी सन्दर्भ आता है तो कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां मुझे अक्सर याद आ जाती हैं।
  6. वातावरण में इस झुटपुट में आजादी की सुनहरी धूल-सी उड़ रही थी और साथ-ही-साथ अनिश्चय भी डोल रहा था , और इसी अनिश्चय की स्थिति में किसी-किसी वक्त भावी रिश्तों की रूपरेखा झलक दे जाती थी।
  7. वातावरण में इस झुटपुट में आजादी की सुनहरी धूल-सी उड़ रही थी और साथ-ही-साथ अनिश्चय भी डोल रहा था , और इसी अनिश्चय की स्थिति में किसी-किसी वक्त भावी रिश्तों की रूपरेखा झलक दे जाती थी।
  8. बांसों का झुरमुट सन्ध्या का झुटपुट है चहक रही चिड़िया टि्वी टि्वी टुट टुट बां स का जब कभी भी सन्दर्भ आता है तो कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां मुझे अक्सर याद आ जाती हैं।
  9. रोज उतनी ही बासी , उतनी ही भागदौड भरी और उतनी ही उदासीन ! अब शाम कवि की काव्य प्रेरणा उस तरह से नहीं रही है शायद जैसी पहले हुआ करती थी ! संझा का झुटपुट , चिडिया की टुट-टुट वाली कविता भावना उपजाने में नाकाम शहरी शाम ! ये शामें ललाती सी , लुभाती सी कहां रही हैं , न कवि का मन अब कहने को करता होगा-मेघमय आसमान से उतर रही संध्या -सुंदरी परी - सी- धीरे धीरे धीरे ..
  10. वह यह भी देखता है कि , बाँसों का झुरमुट , संधया का झुटपुट ये नाप रहे निज घर का मग कुछ श्रमजीवी घर डगमग डग भारी है जीवन , भारी पग ! जो पुराना पड़ गया है जीर्ण और जर्जर हो गया है और नवजीवन सौंदर्य लेकर आनेवाले युग के उपयुक्त नहीं है उसे पंतजी बड़ी निर्ममता के साथ हटाना चाहते हैं , दु्रत झरो जगत् के जीर्ण पत्र ! हे त्रास्त , ध्वस्त ! हे शुष्क , शीर्ण ! हिम ताप पीत , मधु वात भीत , तुम वीतराग , जड़ पुराचीन।
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