कान्तियुक्त meaning in Hindi
pronunciation: [ kaanetiyuket ]
Examples
- ५२ ) `पति परदेशमें हो तो स्त्री शरीरके श्रृगांर आदि संस्कार न करें, मुखकोउदास रखे, उबटन आदिसे बदनको कान्तियुक्त न बनाये और पतिके प्रति एकनिष्ठारखे तथा निराहार रहकर अपने शरीरको सुखा डाले.
- ४ १ ' जो जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्य युक्त , कान्तियुक्त और शक्ति युक्त वस्तु है , उस उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति ही जा न.
- ४ १ ' जो जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्य युक्त , कान्तियुक्त और शक्ति युक्त वस्तु है , उस उस को तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्ति ही जा न.
- सम्पूर्ण जगत का शासक , अणु से भी अणु, कान्तियुक्त, स्वप्न-सुषुप्ति में भी कार्य करने वाला, स्वपA में होने वाले ज्ञान से अनुमान करने योख्य जो प्राण रूप पुरूष है, सब भूतों का जो पर तत्व है, वह मनु है।
- कान्तियुक्त शरीर वाले , दैत्यरूपी वन को आग लगा देने वाले (अधम वासनाओं का भस्म करने वाले), ज्ञानियों में सर्वप्रथम,सम्पूर्ण गुणों के भण्डार वानरों के स्वामी ,श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ.
- सम्पूर्ण जगत का शासक , अणु से भी अणु , कान्तियुक्त , स्वप्न-सुषुप्ति में भी कार्य करने वाला , स्वपA में होने वाले ज्ञान से अनुमान करने योख्य जो प्राण रूप पुरूष है , सब भूतों का जो पर तत्व है , वह मनु है।
- सम्पूर्ण जगत का शासक , अणु से भी अणु , कान्तियुक्त , स्वप्न-सुषुप्ति में भी कार्य करने वाला , स्वपA में होने वाले ज्ञान से अनुमान करने योख्य जो प्राण रूप पुरूष है , सब भूतों का जो पर तत्व है , वह मनु है।
- भावार्थ : -अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरु के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन को ध्वंस करने के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ
- सकलगुणनिधानं वानराणामधीश ं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ अतुल बल के धा म , सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाल े, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रू प, ज्ञानियों में अग्रगण् य, संपूर्ण गुणों के निधा न, वानरों के स्वाम ी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥
- ऊँ पूर्ण परात्पर भगवान हनुमान , अतुल बल के धाम , सोने के पर्वत ( सुमेरू ) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले , दैत्यरूपी वन को ध्वंस करने के लिये अग्नि स्वरूप ज्ञानियों में अग्रगण्य , सम्पूर्ण गुणों के निधान , वानरों के स्वामी , श्री रघुनाथ जी के प्रिय , भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ।