कानी उंगली meaning in Hindi
pronunciation: [ kaani unegali ]
Examples
- पहली बार ) लहलहा चले ज्यादातर भाषाई अखबारों को यह गलतफहमी हो गई है कि लोकतंत्र का यह गोवर्धन जो है, उन्हीं की कानी उंगली पर टिका हुआ है।
- उनकी अनुभूति का कैमरा ' रामकै ' हो गया और वे खुद सिजोफ्रेनिक ' कखले ' हो गए लेकिन वे उसकी कानी उंगली की जुंबिश भी नहीं पकड़ पाए।
- आज बहने भाई कि लम्बी उम्र कि कामना के लिए भक्ति के साथ गाय के गोबर से घंटों की मेहनत से खुद ही गोवर्धन पर्वत अपनी कानी उंगली पर उठाए कृष्ण , राधा और गाय बनाते हैं।
- दूसरी तरफ २ ० हजार के पार कुंलाचे मारते शेयर बाजार के रथ पर सवार चंद लोगों के लिए लाखों रुपये हर रोज लुटा देना बाएं हाथ नहीं , बल्कि बाएं हाथ की कानी उंगली का खेल है।
- जुसेप्पे ने दुर्गापुर के रास्तें में खरीदी होगी तो मैंने देखी नहीं थी , अभी देखा कि वह डिब्बी खोल, उसमें कानी उंगली बोर, नाक में ‘नसनी' सूंघ एक बार फिर अस्तित्ववादी रहस्यवाद के हवाले हो गया, फुसफुसाकर मुझसे बोला,
- मैं लिखता कि दक्षिणी ध्रुव अब सुदूर उत्तर में पहुंच गया है और बारिश के दिनों में न बच्चे गाते हैं न मेंढक मुझे गुदगुदी नहीं होती अब मेरी कांखों से पसीना बहता है पैर की कानी उंगली अब चप्पल से बाहर निकलती है
- खंभा फांड कर प्रहृाद को , ग्राह के मुंह से गजराज को, द्रोपदी को बचाने के लिए कपड़ा देने, रावण को मारने व विभीषण को पालने, कानी उंगली पर पहाड़ उठाने वाले भगवान से हीरा डोम साफ शब्दों में कहते हैं कहां सोये हैं, सुनते नहीं या डोम को छूने से डरे हैं ?
- कुछ उन बच्चों ने जिन्होंने सबक नहीं बनाया हो , अपना नंबर आता देख 3ः55 पर रोनी सूरत बना कर हाथ की कानी उंगली उठा देता, कुछ उन लड़कों ने जिनके लिए पढ़ाई मायने नहीं रखती, कंठ फूट रहा हो, बगलों पर मुलायम बाल आने शुरू हुए हों और रात को स्वप्नदोष की बातें जब अपने दोस्तों को बताए तो साथी नफरत से पेश आते हुए उसे सही जगह उपयोग करने की राय दे।
- कुछ उन बच्चों ने जिन्होंने सबक नहीं बनाया हो , अपना नंबर आता देख 3 ः 55 पर रोनी सूरत बना कर हाथ की कानी उंगली उठा देता , कुछ उन लड़कों ने जिनके लिए पढ़ाई मायने नहीं रखती , कंठ फूट रहा हो , बगलों पर मुलायम बाल आने शुरू हुए हों और रात को स्वप्नदोष की बातें जब अपने दोस्तों को बताए तो साथी नफरत से पेश आते हुए उसे सही जगह उपयोग करने की राय दे।
- मृणाल पांडे ने रविवार को अपने कॉलम कसौटी में लिखा है कि “ यह एक विडंबना ही है कि जिस वक्त दुनिया के अनेक महत्वपूर्ण अखबारों के जनक और वरिष्ठ पत्रकार , इंटरनेट और अभूतपूर्व आर्थिक मंदी की दोहरी चुनौतियों से जूझते हुए नई राहें खोज रहे हैं , वहीं हमारे देश में ( संभवत : पहली बार ) लहलहा चले ज्यादातर भाषाई अखबारों को यह गलतफहमी हो गई है कि लोकतंत्र का यह गोवर्धन जो है , उन्हीं की कानी उंगली पर टिका हुआ है।