अस्तंगत meaning in Hindi
pronunciation: [ asetnegat ]
Examples
- सूर्य नवम भाव में स्थित होकर गुरू से युति करें और द्वितीय भाव में चन्द्रमा पर उनकी पूर्ण रश्मियां पड़ें तो जातक प्रचुर धन का स्वामी हो सकता है परन्तु ऐसी स्थिति में गुरू अस्तंगत दोष से मुक्त हो।
- वर्ष लग्नेश बुध अस्तंगत होकर सप्तम भाव में अपनी नीच राशि मीन में मंगल की आठवीं अशुभ दृष्टि से आक्रान्त है और वर्ष लग्न भी दो पाप ग्रहों , शनि और मंगल के बीच पापाक्रान्त है, पापकर्तरी योग बना रहा है।
- अष्टम भौम का परिहार : मंगल अस्तंगत , नीच राशि का ( कर्क ) या शत्रु राशि ( मिथुन एवं कन्या ) का होकर अष्टम स्थान में हो , तो दोषकारक नहीं , परंतु लग्नेश होकर अष्टगत नहीं होना चाहिए।
- लोक मान्यताओं के अनुसार इस प्रकार के अबूझ मुहूत्त में शुभ कार्य करने पर सभी प्रकार के दोष जैसे गुरू शुक्र का अस्त होना अथवा किसी प्रकार का कोई अशुभ प्रभाव ग्रह बाल्यत्व या अस्तंगत दोष इत्यादि दोष गौण हो जाते हैं।
- 7 . पृच्छक का स्वभाव : प्रश्न लगAेश और अष्टमेश दोनों नीच राशि में हो या अस्तंगत हो तो प्रश्Aकर्ता खिन्न ह्वदय , सुखहीन , दुखी , अनेक चिंताओं से ग्रस्त , किसी न किसी रोग से सदा ग्रस्त रहने वाला पृच्छक होता है।
- जब इन भावों के कारकों व भावेशों पर अशुभ पापी ग्रहों का प्रभाव हो , भाव कारक व भावेश दोनों निर्बल , अस्तंगत हों एवं केतु भी इन पर नीच राशि में होकर प्रभाव डाल रहा हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है।
- जब इन भावों के कारकों व भावेशों पर अशुभ पापी ग्रहों का प्रभाव हो , भाव कारक व भावेश दोनों निर्बल , अस्तंगत हों एवं केतु भी इन पर नीच राशि में होकर प्रभाव डाल रहा हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है।
- कर्ण मधुर , भावपूर्ण एवम् धीर गंभीर स्वरों के धनी , भक्ति संगीत , शास्त्रीय संगीत के द्वारा प्रदीर्घ समय तक करोड़ों अंतकरणों को आल्हादित करने वाले ऐसे श्रेष्ठ गायक , संगीत भास्कर , भारत रत्न पं . भीमसेन जोशी अपने सुरों को हमारे हृदयों में छोड़कर अस्तंगत हो गए।
- इसके ग्रंथकार श्री व्यंकट शर्मा के अनुसार यदि शनि उच्च हो , मूल त्रिकोण में हो , स्वगृही हो , मित्र गृही हो , शत्रु क्षेत्री , नीचस्थ अथवा अस्तंगत न हो तथा शनि का छठें , आठवें , बारहवें भाव से संबंध न हो तब वह सूर्य , चंद्र , दशम व दशमेश को प्रभावित करें तो वह जातक को स्वतंत्र व्यवसाय की ओर प्रेरित करता है।
- कवि ' विश्वप्रिया ' के पाँवों पड़ा, 'सांध्यतारा' से, प्रातः रवि से, अस्तंगत सविता से, उछलती मछली से, लहरती झील से, अंतःसलिला सरिता से, उमड़ती सागर बेला से, बासन्ती झुरमुट से, बाजरे की कलगी से, आँगन के द्वार से, द्वारहीन द्वार से, रूप अरूप से, चक्रान्त शिला से, असाध्य-वीणा से - किससे, किससे नाता नहीं जोड़ता है, कहाँ-कहाँ नहीं रोता है, निज को कहाँ-कहाँ नहीं खोता है, और जो चिन्तन प्रसूत रत्न संग्रह करता है प्रेम से उसे लुटा देता है ।