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अरिष्टनेमी meaning in Hindi

pronunciation: [ arisetnemi ]
अरिष्टनेमी meaning in English

Examples

  1. उन्होने जिस दिन दीक्षा ली थी , उसी दिन से अरिष्टनेमी भगवान की आज्ञा से निरन्तर द्वि बेला का उपवास करते रहने का नियम ले लिया था.द्वारिका में आने के बाद अपने उपवास के पारणे का समय होने पर, वे दो दो की टुकडी में विभक्त होकर भिक्षा माँगने निकले.
  2. विराट नरेश के यहाँ युधिस्ठिर कंक नामक ब्राहमण बने , भीम बल्लभ रसोइया , अर्जुन ने वृहन्नला बन राजकुमारी उत्तरा का गुरुपद सम्हाला तो नकुल ने ग्रंथिक के रूप में कोचवान की जिम्मेदारी ली , सहदेव अरिष्टनेमी के रूप में मवेशियों की देखभाल के लिए नियुक्त हुए , द्रौपदी सैरंध्री बन रानी की दासी नियुक्त हु ई.
  3. सोच में डूबी देवकी इस बात का स्पष्टीकरण पूछने अरिष्टनेमी भगवान के पास पहुँचती है . ......... कथा का शेष भाग-ब्रेक के बाद :) संस्कार विज्ञान-जातकर्म, नामकरण तथा अन्नप्राशन संस्कार (द्वितीय भाग) बैजिक एवं गार्भिक दोषों की निवृ्ति के साथ साथ इस जीवन को ब्रह्मप्राप्ति के योग्य बनाना ही संस्कारों का एकमात्र उदेश्य है.इससे पूर्व के आलेख में बताए गए गर्भावस्था के वे तीन संस्कार मुख्यत:
  4. आठ दिनों तक चलने वाली इस धर्म आराधना में अन्तगड़दशा सूत्र नामक ग्रन्थ का पाठ किया गया जिसमें चतुर्थ काल में जैन धर्म के तीर्थकर , अरिष्टनेमी व महावीर स्वामी के प्रवचनों को सुनकर उस काल के राजाओ , उनकी पटरानी व महारानी व प्रजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होने अपनी आत्मा के कल्याण के लिए उनके समक्ष दीक्षा अंगीकार कर जैन साधु के नियमों का पालन करते हुए मोक्ष को प्राप्त हुए।
  5. आठ दिनों तक चलने वाली इस धर्म आराधना में अन्तगड़दशा सूत्र नामक ग्रन्थ का पाठ किया गया जिसमें चतुर्थ काल में जैन धर्म के तीर्थकर , अरिष्टनेमी व महावीर स्वामी के प्रवचनों को सुनकर उस काल के राजाओ , उनकी पटरानी व महारानी व प्रजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होने अपनी आत्मा के कल्याण के लिए उनके समक्ष दीक्षा अंगीकार कर जैन साधु के नियमों का पालन करते हुए मोक्ष को प्राप्त हुए।
  6. ╨ इसकी व्याख्या यों भी है वाल्मीकि जी ने कहा , यह अरिष्टनेमी के प्रति देवदूत की उचित है , वाल्मीकि जी के उक्त प्रकार से भरद्वाज के प्रति कहने पर दिन अस्त हो गया , सूर्य भगवान् अस्ताचल के शिखर चले गये एवं मुनियों की सभा वाल्मीकि जी को नमस्कार कर सायंकालीन सन्ध्योपासना , अग्निहोत्र आदि करने के लिए स्नानार्थ चली गई और रात्रि के बीतने के अनन्तर सूर्योदय होने पर पुनः वाल्मीकि जी के पास आ गई।
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