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अनन्यभाव meaning in Hindi

pronunciation: [ anenyebhaav ]
अनन्यभाव meaning in English

Examples

  1. जिसका भगवान् के नाममें अटूट श्रद्धा-विश्वास है , अनन्यभाव है , उसका एक ही नामसे कल्याण हो जाता है ।
  2. Û व्रत के अनुष्ठान काल में संकल्प की दृढ़ता , नियम-पालन की कठोरता , पूर्ण श्रद्धा और अनन्यभाव अत्यंत आवश्यक शर्त है।
  3. इस प्रकार जब हम ब्रहृ या गुरु की अनन्यभाव से भक्ति करेंगे तो हमें उनसे अभिन्नता की प्राप्ति होगी और आत्मानुभूति की प्राप्ति सहज हो जायेगी ।
  4. श्री कृष्ण शरणम ममः ॥ जय श्री कृष्णा ॥ भगवान श्री कृष्ण परमब्रह्म पुरुषोत्तम हैं , उनकी अनन्यभाव से भक्ति करने वाले जीवों का सर्व विधि कल्याण है।
  5. इसपर कोई यह कहे कि हमारा दूसरोंका खण्डन करनेमें तात्पर्य नहीं है , हम तो अपनी उपासनाको दृढ़ करते हैं , अपना अनन्यभाव बनाते हैं , तो इसका उत्तर यह है कि दूसरोंका खण्डन करनेसे अनन्यभाव नहीं बनाता ।
  6. इसपर कोई यह कहे कि हमारा दूसरोंका खण्डन करनेमें तात्पर्य नहीं है , हम तो अपनी उपासनाको दृढ़ करते हैं , अपना अनन्यभाव बनाते हैं , तो इसका उत्तर यह है कि दूसरोंका खण्डन करनेसे अनन्यभाव नहीं बनाता ।
  7. यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है , क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है अर्थात् उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
  8. इन प्रपत्तिभाव प्रधान भक्तों ने विष्णु , वासुदेव या नारायण तथा उनके अवतार राम और कृष्ण के प्रति अनन्यभाव का प्रेम प्रकट किया है तथा कृष्ण और गोपियों की आनन्द-क्रीड़ाओं का तन्मयतापूर्वक वर्णन करते हुए उनके प्रति दास्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति प्रकट की है।
  9. इन प्रपत्तिभाव प्रधान भक्तों ने विष्णु , वासुदेव या नारायण तथा उनके अवतार राम और कृष्ण के प्रति अनन्यभाव का प्रेम प्रकट किया है तथा कृष्ण और गोपियों की आनन्द-क्रीड़ाओं का तन्मयतापूर्वक वर्णन करते हुए उनके प्रति दास्य , वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति प्रकट की है।
  10. यह एक प्रकार का लड़कपन है और लड़कपन समझकर भगवान् अप्रसन्न नहीं होते और यों सकाम भावना से आर्तिनाश , अर्थप्राप्ति आदि के लिये भी अनन्यभाव से केवल भगवान् से ही प्रार्थना करते रहने परभगवान् अपने सहज दयालु शील-स्वभाववश उसकी सकामता का हरण करके अन्त में उसे अपनी निष्काम भक्ति देकर अपनी प्राप्ति करा देते हैं - कैसे भी भजे , भगवान् को भजने वाला अन्त में भगवान् को पा जाता है - ‘ मद्भक्ता यान्ति मामपि। '
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