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प्रत्ययवाद sentence in Hindi

pronunciation: [ pratyayavad ]
प्रत्ययवाद meaning in English

Examples

  1. फिर क्या कारण है कि वर्तमान युग में जब विज्ञान तथा इंजीनियरी के विकास ने भौतिकवाद की सत्यता की अनगिनत अकाट्य पुष्टियां कर दी हैं, तब भी प्रत्ययवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है?
  2. बर्कले ने ईश्वर के विषय में कोई प्रमाण नहीं दिया है. प्लेटों ने जिस प्रत्ययवाद को जन्म दिया था, उसमें तो प्रत्यय औरप्रत्यक्ष-~ ज्ञान के बीच में ही खाई थी और उसे वह पाट नहीं पाया था.
  3. प्रत्ययवाद, प्रभावी वर्गों के विश्वदृष्टिकोण तथा वैचारिकी के साथ जुड़ा है और कुछ सामाजिक शक्तियों के लिए उपयोगी है, क्योंकि यह मौजूदा विश्व व्यवस्था की शाश्वतता तथा निरंतरता के पक्ष में दलीले मुहैया कराता है।
  4. भाववादी दर्शन, अध्यात्म, प्रत्ययवाद अपने आप में कुछ नहीं हैं, बल्कि विशेष वर्गों द्वारा संसार के भौतिक संसाधनों पर अधिकार बनाए रखने और समाज में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए गढ़ी गई तरकीबें हैं।
  5. हेगेल का दर्शन निरपेक्ष प्रत्ययवाद या चिद्वाद (Absolute Idealism) अथवा वस्तुगत चैतन्यवाद (Objective Idealism) कहलाता है; क्योंकि उनके मत में आत्मा-अनात्मा, द्रष्टा-दृश्य, एवं प्रकृति-पुरुष सभी पदार्थ एक ही निरपेक्ष ज्ञानस्वरूप परम तत्व या सत् की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं।
  6. प्रत्ययवाद मन को पदार्थ से अलग करके परिवेशी वास्तविकता से स्वतंत्र, बंद, अंतर्जगत बना ड़ालता है, वहीं यंत्रवाद पदार्थ से मन के गुणात्मक अंतर को नहीं देख पाता और उसे मात्र तंत्रिकीय प्रक्रियाओं तक सीमित कर देता है।
  7. यह साहचर्यवाद मनोवैज्ञानिक चिंतन में मुख्य प्रवृति बन गया और इस प्रवृत्ति के भीतर ही भौतिकवाद और प्रत्ययवाद के बीच संघर्ष, मन की संकल्पना को लेकर चला और दोनों ने ही मानसिक परिघटनाओं की प्रकृति की व्याख्या अपने-अपने ढ़ंग से की।
  8. पर सवाल यह है की कौन सी सामाजिक शक्तियां भारतीय प्रत्ययवाद (खासकर माया वाद और अज्ञेयवाद) को इतना समृद्ध और प्रसिद्द करवाने में लगी थी की आज कहीं भी प्राचीन भौतिकवाद का नामलेवा कोई न बचा (आसाम-बंगाल के कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर)?
  9. दलित शोषण का औजार: भक्ति (' भक्ति और जन ' के बहाने) सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र ' भक्ति और जन ' डा. सेवासिंह की आलोचनात्मक कृति है जो भारतीय प्रत्ययवाद की दार्शनिक परम्परा का विश्लेषण करके उसके प्रति आलोचनात्मक समझ पैदा करती है।
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