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कोविदार sentence in Hindi

pronunciation: [ kovidar ]
कोविदार meaning in English

Examples

  1. संस्कृत में इसके विभिन्न गुणों के आधार पर भी इसका नामकरण किया गया है जैसे गण्डारि जिसका अर्थ है चंवर के समान फूल वाला या कोविदार यानी विचित्र फूल तथा फटे पत्ते वाला।
  2. इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा-गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि।
  3. कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे।
  4. इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा-गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि।
  5. इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है यथा-गण्डारि यानी चमर के समान फूल वाली, कोविदार यानी विचित्र फूल और फटे पत्ते वाली आदि।
  6. यह जानकारी प्राप्त कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि बिहार के वनवासी बंधुओं की लोकभाषा में भी ' कोइलार ' अथवा ' कोइनार ' नाम से जिस शंकरप्रिय पुष्प की प्रशस्ति है, वह कोविदार का ही अपभ्रंश रूप है।
  7. शोधनीय वृक्ष-फल और मूल वाले पूर्वोक्त वृक्षों से भिन्न ये तीन वृक्ष और हैं १ स्नुही (थोर) २ अर्क (आकडा) ३ अश्मंतक (कोविदार, पाषाण भेद, पत्थर चट्टा) इनके कार्य भेद पृथक हैं.
  8. कपिश्रेष्ठ ने वहाँ सरल (चीड़), कनेर, खिले हुए खजूर, प्रियाल (चिरौंजी), मुचुलिन्द (जम्बीरी नीबू), कुटज, केतक (केवड़े), सुगन्धपूर्ण प्रियंगु (पिप्पली), नीप (कदम्ब या अशोक), छितवन, असन, कोविदार तथा खिले हुए करवीर भी देखे।
  9. ' ऋतुसंहार ' के साक्ष्य से शरद-वर्णन में कवि के कथनानुसार, जिसकी शाखाओं की सुंदर फुनगियों को पवन धीमा-धीमा झुला रहा है, जिसपर बहुत से फूल खिले हुए हैं, जिसकी पत्तियाँ बहुत कोमल हैं और जिसमें से बहते हुए मधु की धार को मस्त-मस्त भौरें धीरे-धीरे चूस रहे हैं, ऐसा कोविदार का वृक्ष किसका ह्रदय टुकड़े-टुकड़े नहीं कर देता-
  10. रामायाण, महाभारत काल में हमें ध्वजा के बारे में स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं, रामायण अयोध्या काण्ड में स्पष्ट उल्लेख है कि राम और सीता के साथ अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान एक दिन लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना अपने आगे कोविदार ध्वजा फहराती चली आ रही है, और उन्होंने तत्काल ही अनुमान लगा लिया कि भरत आ रहे हैं।
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