×

अद्वय sentence in Hindi

pronunciation: [ advaya ]
अद्वय meaning in English

Examples

  1. इन तीन अभिन् न तत् वों पर भी गम् भीर विचार किया गया और अन् त में यह निश् चय पर हम पहुंचे कि भगवान् श्रीकृष् ण ही अद्वय ज्ञान तत् व एवं आत् मा के प्राप् तव् य हैं।
  2. यह हुआ कि पूर्वमीमांसा भी उत्तरमीमांसा की तरह अद्वय आत्मा को मानकर ही निर्मित हुए हैं, तथापि पूर्वमीमांसा शरीर के अतिरिक्त कर्त्ता-भोक्ता आत्मतत्व को मानकर ही प्रचलित हुआ है, क्योंकि कर्म-सिद्धांत के अंतर्गत “कृतहानि” और “अकृताभ्यागम” निहित है ।और यहीं से
  3. आप एक (अद्वय), मायिक जगत से विलक्षण, प्रभु, इच्छारहित, ईश्वर, व्यापक, सदा समस्त विश्व को ज्ञान देने वाले, तुरीय (तीनों अवस्थाओं से परे) और केवल अपने स्वरूप में स्थित हैं॥ ९ ॥
  4. अपने ग्रंथ के 18 वें अध्याय में उन्होंने ‘ शक्तिचा कर्ण कुहरीं ', ‘ मुद्रा ', ‘ शांभव अद्वय ', ‘ आनंदवैभव ', ‘ समाधि धन ' जैसी मराठी उक्तियों में नाथपंथी संप्रदाय में प्रचलित शब्दावलि का प्रयोग किया है।
  5. तो आत् मा का स् वरूप भी विस् तृत बताया गया आपको और परमात् मा का स् वरूप भी बताया गया कि भगवान् अद्वय ज्ञान तत् व हैं स् वयं सिद्ध हैं एक शब् द याद रखना स् वयं सिद्ध तत् व हैं श्रीकृष् ण।
  6. यह हुआ कि पूर्वमीमांसा भी उत्तरमीमांसा की तरह अद्वय आत्मा को मानकर ही निर्मित हुए हैं, तथापि पूर्वमीमांसा शरीर के अतिरिक्त कर्त्ता-भोक्ता आत्मतत्व को मानकर ही प्रचलित हुआ है, क्योंकि कर्म-सिद्धांत के अंतर्गत “कृतहानि” और “अकृताभ्यागम” निहित है ।और यहीं से पुनर्जन्म आदि की सिद्धि भी होती है ।
  7. अभिप्राय यह हुआ कि पूर्वमीमांसा भी उत्तरमीमांसा की तरह अद्वय आत्मा को मानकर ही निर्मित हुए हैं, तथापि पूर्वमीमांसा शरीर के अतिरिक्त कर्त्ता-भोक्ता आत्मतत्व को मानकर ही प्रचलित हुआ है, क्योंकि कर्म-सिद्धांत के अंतर्गत “कृतहानि” और “अकृताभ्यागम” निहित है ।और यहीं से पुनर्जन्म आदि की सिद्धि भी होती है ।
  8. अभिप्राय यह हुआ कि पूर्वमीमांसा भी उत्तरमीमांसा की तरह अद्वय आत्मा को मानकर ही निर्मित हुए हैं, तथापि पूर्वमीमांसा शरीर के अतिरिक्त कर्त्ता-भोक्ता आत्मतत्व को मानकर ही प्रचलित हुआ है, क्योंकि कर्म-सिद्धांत के अंतर्गत “कृतहानि” और “अकृताभ्यागम” निहित है ।और यहीं से पुनर्जन्म आदि की सिद्धि भी होती है ।
  9. अभिप्राय यह हुआ कि पूर्वमीमांसा भी उत्तरमीमांसा की तरह अद्वय आत्मा को मानकर ही निर्मित हुए हैं, तथापि पूर्वमीमांसा शरीर के अतिरिक्त कर्त्ता-भोक्ता आत्मतत्व को मानकर ही प्रचलित हुआ है, क्योंकि कर्म-सिद्धांत के अंतर्गत “ कृतहानि ” और “ अकृताभ्यागम ” निहित है ।और यहीं से पुनर्जन्म आदि की सिद्धि भी होती है ।
  10. स्कूल की शिसका पुरी करते कलकत्ता का टिकेट कराया कहती पाक-विद्या सीखेंगे होटल स्कूल में नाम लिखाया ट्रेनिंग के बहाने लन्दन आ गई कहती अभी यही रहना हे अभी अभी तो लन्दन आए नए नए अनुभव लेना है पल्ली दीदी की नेक सलाह उसे नही भाति हे दीदी जीजा अद्वय के संघ बातें कर कुश हो जाती है
More:   Prev  Next


PC Version
हिंदी संस्करण


Copyright © 2023 WordTech Co.