दयनीयता से sentence in Hindi
pronunciation: [ dayaniyata se ]
Examples
- चिढ़ते तुम कई चीजों से थे-अपनी दरिद्रता से, लोगों की संपन्नता से, अपनी दयनीयता से दूसरों के स्मार्टनेस से, दूसरों के अच्छे कपड़े से, अंग्रेजी से, शायद पूरी कायनात से चिढ़ते थे तुम।
- अब निज़ामशाह ने आदिलशाह के पास दयनीयता से भरी प्रार्थना भेजी और कहा कि रियासत का अधिकांश भाग पहले ही मुग़ल अधिकार में है, अगर परेण्डा का भी पतन हो गया तो उसका अर्थ होगा निज़ामशाही वंश का अन्त।
- जब ज़्यादा हो गया तो मुनव्वर भाई बड़ी दयनीयता से हाथ जोड़ कर दीवान से बोले, 'कुछ मानवता भी है आप में बची हुई या वह भी शर्म में घोल कर पी गए हैं।' 'आप चलिए बस मैं पहुंच रहा हूं।'
- अयोध्या गुरुकुल इनके सांस्कृतिक चिंतन का भी प्रतिबिम्ब था | स्वामी जी ओजस्वी वक्ता निर्भीक एवं कर्मठ सन्यासी थे | निश्शुल्क गुरुकुल संचालन का गुरुत्तर प्रभार होते हुए भी जीवन भर उन्होंने किसी धनी के समक्ष दयनीयता से हाथ नहीं फैलाया | अपने व्यक्तित्व एवं परिश्रम से, जो थोडा बहुत धन मिला उसी से संयमपूर्वक कार्य चलाते रहे |
- आडवाणी के ब्लॉग, ' कमल सन्देश ' और ‘ पांचजन्य ' से निकलता और उजागर होता तथ्य भाजपा के लिए हितकर और श्रेयस्कर ज़रूर हो सकता है पर भाजपा के कितने तथाकथित जनाधारविहीन नेता, जो अपने बर्चस्व और महत्वाकांक्षा के लिए कटिबद्ध और प्रतिबद्ध लगते हैं, भाजपा को उसकी वर्तमान दुर्दशा और दयनीयता से उबारने के लिए कृतसंकल्प हो पायेंगे यह जानना और अनुमान लगाना मुश्किल लगता है.
- अपनी विद्यास्थली संस्कृत पाठ्शाला की दयनीयता से उन्हे पुनः घर लौटना पडा | उन्होने सत्यमित्र, विद्यामित्र, विजयमित्र, रुद्रमित्र, ऋषिमित्र आदि विद्यार्थियों को ही लेकर उसी पाठशाला को गुरुकुल रूप में श्रावण पूर्णिमा सं० १९८२ के दिन परिवर्तित कर दिया | बाद में यही गुरुकुल अयोध्या के जालपानाला पर श्री मनु जी खत्री द्वारा प्रदत्त भूमि पर लाया गया | पश्चात इनके पुत्र स्वामी तत्व बोधानन्द सरस्वती द्वारा इसका सफल संचालन किया वर्तमान में महासभा उत्तरोत्तर संस्था के उन्नयन में तत्पर है |
- वो सोच में खो गए, सफ़दर के हाथ को लिए-दिए, पर दयनीयता से घिघियाते हुए सफ़दर ने ग्लेड टू सी यू...कहा तो फिर वो झटके से वापस आए फिर आहिस्ता से अपने धीरे-धीरे बोलने के अंदाज से बोले-“ ये तो मैं नहीं कह सकता कि आपसे मिलकर खुशी हुई पर मुझे लगा कि मैं हल्का हो गया हूँ...।” सफ़दर सन्न रह गया उसने मुझे देखा, पर बाद में उसकी तुरंत बुद्धि ने भाँप लिया कि मुकाबला तगड़ा है।
- हिन्दी भाषा की अ-लोकप्रियता की मार रंगमंच ने भी झेली है, यहाँ तक कि हिन्दी नाटकों के न लिखे जाने की लंबी समयावधि के उपरान्त इसके भी अंत की बकायदा घोषणा कर दी गई थी, लेकिन रंगमंच ने स्वयं को बहुत सावधानीपूर्ण ढंग से उस दयनीयता से लगभग निकाल लिया और शायद यह कहना गलत नहीं होगा सुलभ जी और अरविन्द गौण, संजय उपध्याय आदि जैसे जुझारू रंगकर्मियों के द्वारा किये जा रहे रंगमंचीय प्रयोगों, लेखों के द्वारा ही रंगमंच अपनी छवि से बाहर आ सका है.