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उत्तान sentence in Hindi

pronunciation: [ utan ]
उत्तान meaning in English

Examples

  1. गुप्तकालीन कलाकारों ने कुषाण काल के शारीरिक सौंदर्य के उत्तान प्रदर्शन को नहीं अपनाया वरन् स्थूल सौंदर्य और भाव सौंदर्य का सुन्दर योग स्थापित किया।
  2. 8-वेषिटक आसन-जब नारी उत्तान सम्पुट आसन से संभोग करते समय दोनों जंघाओं को कैंची के समान फंसाकर योनि को अत्यधिक संकुचित करती है तो वेष्टिक आसन होता है।
  3. तेरा दिल-डौल खजूर के समान शानदार है, और तेरी छातियाँ अंगूर के गुच्छो के समान है, तेरी साँस की सुगंध सेबों के समान है, और तेरे चुम्बन उत्तान दाखरस हैं!
  4. अर्थात् जैसे सूर्यकिरणें मुकुलितावस्था में गम्भीर (गहरे) कमल को खूब विकसित कर उत्तान (छिछला) कर देती है, वैसे ही तृष्णा भी धीर-अयाचित-व्रत-पुरुष को शीघ्र अधीर-याचना द्वारा लघु-बना देती है।।
  5. काशिका के वर्णन में स्पष्ट है कि यदि उपर्युक्त पाँचों गोटियाँ चित्त गिरें या पट्ट गिरें, तो दोनों अवस्थाओं में गोटी फेंकने वाले की जीत होती थी (यत्र यदा सर्वे उत्तान पतन्ति अवाच्यो वा, तदा पातयिता जयति।
  6. उसे अपने व्यवहार से यह सोचने का अवसर न दो कि मुझे छोटा समझा जा रहा है, यजुर्वेद का ऋषि कहता है उत्तान हस्तानम् सोप सद्य: यदि संसार में उन्नति करना चाहते हो, मान सम्मान चाहते हो तो विनम्र बनो।
  7. वेदों में वृक्षों को पृथ्वी की संतति कहकर इन्हें अत्यधिक महत्व एवं सम्मान प्रदान किया गया है-सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद की एक ऋचा में कहा गया है-भूर्जज्ञ उत्तान पदो.......... (ऋग्वेद् १०/७२/४) अर्थात हमारी पृथ्वी वृक्ष से उत्पन्न हुई है।
  8. ये आसन इस प्रकार हैं-योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभाति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तामन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।
  9. फिर क्यों मुझे एक सामान्य नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया? एक ओर तुम लोग मुझे पुरूष की प्रकृति या ईश्वर की माया मानकर पूजनीय मानते हो और दूसरी ओर एक साधारण मानवी की भांति उत्तान श्रृंगार की मूर्ति के रूप में भी प्रस्तुत करते हो।
  10. वेदों में वृक्षों को पृथ्वी की संतति कहकर इन्हें अत्यधिक महत्व एवं सम्मान प्रदान किया गया है-सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद की एक ऋचा में कहा गया है-भूर्जज्ञ उत्तान पदो.......... (ऋग्वेद् 10 / 72 / 4) अर्थात हमारी पृथ्वी वृक्ष से उत्पन्न हुई है।
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