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जिरह-बख्तर sentence in Hindi

pronunciation: [ jirah-bakhtar ]
जिरह-बख्तर meaning in English

Examples

  1. मरदाने, आँगन के पास एक बड़ा कमरा था जिसमें बन्दूकें तलवारें, बरछियाँ लाठियाँ लालटेनें, मशालें रखी रहती थीं और दीवार पर दो जिरह-बख्तर और एक ढाल टँगी रहती थी।
  2. पर वह पुराने दिन नहीं भूलते दिल्ली के जब दिसम्बर की कड़कड़ाती सर्दियों में जिरह-बख्तर से लैस हो कर इस नामुराद (प्यार से कहा है) चीज का स्वाद लिया जाता था।
  3. तभी उनकी बाईं बाँह मेरे कन्धे पर टिक जाती हैं, उँगलियाँ इधर-उधर रेंगने लगती हैं, और कुछ देर बाद माँ के पहनाए गए जिरह-बख्तर में आजाद होने के बाद मैं सामने झूलते हुए सफलता के उस रेशमी परिधान को देखती हूँ।'
  4. ध्यान रहे, समूचे यहूदी समाज के संरक्षणकर्ता होने के भाव का ही एक रूप योद्धाओं द्वारा पहने जाने वाले जिरह-बख्तर यानी एक किस्म के अंगरखा में नजर आता है, जिसमें सीने की रक्षा के लिए लोहे की पट्टियां लगी होती थीं।
  5. तभी उनकी बाईं बाँह मेरे कन्धे पर टिक जाती हैं, उँगलियाँ इधर-उधर रेंगने लगती हैं, और कुछ देर बाद माँ के पहनाए गए जिरह-बख्तर में आजाद होने के बाद मैं सामने झूलते हुए सफलता के उस रेशमी परिधान को देखती हूँ।
  6. नाजुक, कोमल माओवादी के साथ सुर मिलाना और भी श्रेयस्कर है और माओवादियों को चाहिए ही क्या? ” भूल गलती बैठी है जिरह-बख्तर पहन कर तख्त पर दिल के / चमकते हैं खड़े हथियार उसके / आँखें चिलकती हैं सुनहरी तेज पत्थर सी..
  7. नाजुक, कोमल माओवादी के साथ सुर मिलाना और भी श्रेयस्कर है और माओवादियों को चाहिए ही क्या? “भूल गलती बैठी है जिरह-बख्तर पहन कर तख्त पर दिल के / चमकते हैं खड़े हथियार उसके / आँखें चिलकती हैं सुनहरी तेज पत्थर सी..! है सब खामोश / इब्ने सिन्ना, अलबरूनी दढ़ियल सिपहसलार सब ही खामोश हैं।
  8. तभी उनकी बाईं बाँह मेरे कन्धे पर टिक जाती हैं, उँगलियाँ इधर-उधर रेंगने लगती हैं, और कुछ देर बाद माँ के पहनाए गए जिरह-बख्तर में आजाद होने के बाद मैं सामने झूलते हुए सफलता के उस रेशमी परिधान को देखती हूँ।'‘जाँच अभी जारी है' कहानी में ममता कालिया ने स्त्री-उत्पीडन की व्यथा को बहुत ही मार्मिकता के साथ व्यक्त किया है।
  9. तभी उनकी बाईं बाँह मेरे कन्धे पर टिक जाती हैं, उँगलियाँ इधर-उधर रेंगने लगती हैं, और कुछ देर बाद माँ के पहनाए गए जिरह-बख्तर में आजाद होने के बाद मैं सामने झूलते हुए सफलता के उस रेशमी परिधान को देखती हूँ।' 'जाँच अभी जारी है' कहानी में ममता कालिया ने स्त्री-उत्पीडन की व्यथा को बहुत ही मार्मिकता के साथ व्यक्त किया है।
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